Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 62
________________ [५८] चंत्यवन्दन भववासनानो वेग टाले, राचतां गुण तानमां, श्रीपाल मयणासुंदरी, साधी घणा सुखिया थया, नवपद भजो सद्भावथी, अमां अखिल मंत्रो रह्या...१ अरिहंत पदने प्रथम थुणतां, विघ्न सहु दूरे टले, वली सिद्ध आचारज अने, उपाध्यायथी शांति मले, पंचम मनोहर साधु पद ने, सेवतां सुखोया थयां, नवपद भजो सद्भावथी, अमां अखिल मंत्रो रह्या...२ दर्शन तथा शुभ ज्ञानने, चारित्र पदनी योजना, ओ त्रितयनी आराधना, पूरे खदा सहु कामना, अंतिम रह्यं तपपद चळकतुं, बार जस भेदो कह्यां, नवपद भजो सद्भावथी, अमां अखिल मंत्रो रह्या...३ नवपद पूजाना चैत्यवंदनो ... अरिहंत नु चैत्यवन्दन [१] उपन्नसन्नाणमहोमयाणं, सप्पाडिहेरासण संठियाणं, सद्देसणाणंदियसज्जणाणं, नमो नमो होउ सया जिणाणं..१ नमो नंत संत प्रमोद प्रधान, ......... प्रधानाय भव्यात्मने भास्वताय, थया जेहना ध्यानथी सौख्य भाजा, सदा सिद्धचक्राय श्रीपाल राजा...२ कर्या कर्म दुर्मम चकचूर जेणे, भला भव्य नवपद ध्यानेन तेणे, करी पूजना भव्य भावे त्रिकाळे, सदा वासियो आतमा तेणे काळे...३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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