Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 60
________________ [ ५६ ] साधु पद आराधतां साधु पद पावे, तप जप संयम आदरे, शिवसुंदरी ने कामे... ६... दर्शन ज्ञानपद ध्यावतां, दर्शन ज्ञान अजवाळे, चारित्र पद ध्यावतां, शिवमंदिरमां म्हाले... ७... केसर कस्तूरी केतकी, मचकुंद मालती चाले, सिद्धचक्र सेव्थं त्रिकाल, जेम मयणाने श्रीपाले ... ८... नव आयंबिल नववार, शील समकित वहाल, रूपविजय कविरायनो, माणेक कहे उजमाल... ६... [१३] पहेले पद अरिहंतनां, गुण गाउं नित्ये, बीजे सिद्धतणा घणा, समरो ओक चित्ते...१... आचारज त्रीजे पदे, प्रणमो बिहुं कर जोडी, नमिओ श्री उवझायने, चोथे मद मोडी... २... पंचम पद सर्व साधुनुं, नमतां न आणो लाज, अ परमेष्ठि पंचने, ध्याने अविचल राज. दंसण शंकादिक रहित, पद छट्ठ धारो, सर्व नाणपद सातमे, क्षण ओक न विसारो... ४... चारित्र चोखुं चित्तथी, पद अष्टम जपिये, सकल भेद बिच दान फल, तप नवमे तपिये... ५... ओ सिद्धचक्र आराधतां पूरे वंछित कोड, सुमतिविजय कविरायनो, राम कहे कर जोड... ६... 1 Jain Education International " चत्य वन्दन .. ३. ... [१४] श्री अरिहंत उदार कांति, अति सुंदर रूप, सेवो सिद्ध अनंत संत, आतम गुण भूप... १... For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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