Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 59
________________ पर्वमाला [५५] सदर्शनं शममयं श्री जिनोक्त सत्त्यं, तत्त्वप्रकाश कुशलं सुखदं सुबोध छिन्नाश्रवं सुमतिगुप्तिमयं चरित्रं, कष्टिकाष्ट दहनं सुतपं श्रयामि...३... पापौघनाशनकरं' वरमंगलं च, त्रैलोक्य सारमुपकार परं गुरु च, भावात्ति शुद्धिवर कारणमुत्तमानां, श्री मोक्ष सौख्यकरणं हरणं भवानां...४.. भव्याब्ज बोधतरणि भव सिंधुनावं चिंतामणे सुरतरोरधिकं सुभावं, तत्त्वत्रिपादनवकं नवकाररूपं, श्री सिद्धचक्रसुखदं प्रणमामि नित्यं...५... [१२] सिद्धचक्र आराधतां, भव सागर तरोये, भव अटवी थी उतरी, शिववधू ने वरीये...१... अरिहंत पद आराधतां, तिथंकर पद पावे, जग उपकार करे घणां, सिधा शिवपुर जावे...२ .. सिद्धपद ध्याता थकां, अक्षय अचल पद पावे, कर्म कटक भेदी करी, अकळ अरुपी थावे...३... आचारज पद ध्यावतां, युग प्रधान पद पावे, जिनशासन अजवाळीने, शिवपुर नयर सोहावे. पाठक पद ध्यावता, वाचक पद पावे, भणे भणावे भावशू, सुर शिवपुर जावे...५... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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