Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 58
________________ [ ५४ ] अमराचल पद संपजे, पूरे मनना कोड, मोहन कहे विधिसह करो, होये भवनो छोड... [१०] पहेले दिन अरिहंत नुं, नित्य कीजे ध्यान, बीजे पद वळी सिद्धनुं, कीजे गुणगान ...१... आचारज त्रीजे पढ़े, जपतां जय-जयकार, चोथे पदे उवझायना, गुण गाओ उदार...२... सकल साधु वंदो सही, अढी द्विपमां जेह, पंचम पद आदर करो, जपजो धरी ससने ह...३... छट्ट े पद दर्शन नमो, दरशन अजुवालो, नमो नाण पद सातमे, जिम पाप पखालो... ४... आठमे पद आदर करो, चारित्र सुचंग, पद नवमे बहु तप तणो, फळ लहो अभंग... ५... अणी पेरे नवपद भावशुं, जपतां नव-नव कोड, पंडित शांतिविजय तणो, शिष्य कहे कर जोड़... ६... [११] जैनेंद्रमिंद्रमहितं गत सर्व दोषं, ज्ञानाधनंत गुणरत्न विशालकोषं, कर्मक्षयं शिवमयं परिनिष्टितार्थं, चैत्यवन्दन सिद्धं च बुद्धमविरुद्ध महं च वंदे... १... गच्छाधिपं गुणगणं गणिनं सुसौम्यं, वंदामि वाचकवरं श्रुतदानदक्षं, क्षांत्यादि धर्मकलितां मुनिमालिकां च, Jain Education International ... निर्वाण साधनपरं नरलोक मध्यं ...२... www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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