Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 63
________________ पर्वमाला [५] झिं के तीर्थकरा कर्म उदये करीने, दिये देशना भव्यने हित धरीने, सदा आठ महापाडिहारे समेता, सुरेशे नरेशे स्तव्या ब्रह्मपुत्ता...४ कर्यां घातियां कर्म चारे अलग्गां, भवोपग्रही चार जे छे विलग्गां, ... जगत् पंचकल्याणके सौख्य पामे, __ नमो तेह तीर्थंकरा मोक्षकामे...५ सिद्ध नु चैत्यवन्दन [२] सिद्धाणमाणंदरमालयाणं, नमो नमोणंत चउक्कयाणं, समग्गकम्मक्खयकारयाणं, जम्मंजरादुक्खनिवारयाणं.१ करो आठ कर्म क्षये पार पाम्या, जरा जन्ममरणादि भय जेणे वाम्या, . निरावरण जे आत्मरूपे प्रसिद्धा, थया पार पामी सदा सिद्ध बुद्धा...२ त्रि भागोनदेहावगाहात्म देशा, रह्या ज्ञानमय जातवर्णादि लेशा, सदानंद सौख्याश्रिता ज्योतिरूपा, अनाबाध अपुनर्भवादि स्वरूपा...३ आचार्यपद चैत्यवन्दन [३] सूरीण दूरीकयकुग्गहाणं, नमो नमो सूरिसमप्पहाणं, सद्देसणादाण-समायराणं, अखंड छत्तीस गुणायराणं.१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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