Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 61
________________ पर्वमाला [५७] आचारज उवझाय साधु, समता रस धाम, जिन भाषित सिद्धांत शुद्ध, अनुभव अभिराम...२... बोधि बीज गुण संपदाओ, नाण चरण तव शुद्ध, ध्यावो परमानंद पद, ओ नव पद अविरुद्ध...३... इह परभव आनंद कंद, जगमांहि प्रसिद्धो, चिंतामणी सम जास जोग, बहु पुण्ये लद्धो...४.... तिहुअण सार अपार मेह, महिमा मन धारो, परिहर पर जंजाल जाल, नित अह संभारो...५... सिद्धचक्र पद सेवतांओ, सहजानंद स्वरूप, अमृतमय कल्याणनिधि, प्रगटे चेतन भूप...६... [१५] अहं पद आदे नमुं, बीजे सिद्ध सुजाण, सूरि वाचक शोभतां, पंचम पद मुनि जाण...१... दर्शन नाण अति दीपतो, चारित्र तप सुखकार, बार आठ छत्तीस सही, पणवीस सगवीस धार...२... सडसठ इगवन शोभतां, सीत्तेर बार प्रकार, अष्ट कमल दल थापीने, ध्यावो हृदय मोझार...३... सिद्धादिक पद चिंह दिसे, मध्ये अरिहंत देव, दर्शन नाण चारित्र ने, तप विदिशीये सेव...४... ॐ ह्रीं अक्षर संयुत, दिन प्रत्ये दोय हजार, सिद्धचक्र सुण्य साहिबा, कीर्तिचंद्र कहे तार...५... [१६] शिवसंपदा वरवा सदा, नवपद धरू हुं ध्यानमां, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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