Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 25
________________ पर्वमाला [२१] - बीज भवि करतां थकां, बीहु विध धर्म मुणंत, पंचमी तप करतां थकां, पांचे ज्ञान भणंत...५... अष्टमी तप करतां थकां, अष्ट कर्म हणंत, अकादशी करतां थकां, अंग अगीयार भणंत...६... चौदे पूरवधर भलाओ, चौदश आराधे, अष्टमी तप करतां थकां, अष्टमी गति साधे...७... दण्डविरज राजा थयो, पाम्यो केवल नाण, अष्टमी तप महिमा वडो, भाखे श्री जिनभाण...८... अष्ट कर्म हणवा भणी, करिअ तप सुजाण, न्याय मुनि कहे ते भवि, पामे परम कल्याण...६... अकादशीना चैत्यवंदनो मौन एकादशी . [१] नेमि जिनेसर गुणनीलो, ब्रह्मचारी शिरदार, सहस पुरुषशुं आदरी, दीक्षा जिनवर सार...१... पंचावनमें दिन लघु, निरूपम केवल नाण, भविक जीव पडिबोधवा, विचरे महियल जाण...२... विहार करंता आवियाओ, बावीशमा जिनराय, द्वारिका नगरी समोसर्या, समवसरण तिहां थाय...३... बार परषदा तिहां मली, भाखे जिनवर धर्म, सर्व पर्वतिथि साचवो, जिम पामो शिव शर्म.. तव पूछे हरि नेमने, दाखो दिन मुज अक, थोडो धर्म कर्या थकी, शुभ फल पामुं अनेक...५... ४ . . . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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