Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 44
________________ [४०] चैत्य वन्दन अक्षय तृतीया नुं चैत्यवन्दन छठ तप करी व्रत लीये, आदीश्वर जिनराय, आहारादिक तणो हुओ, प्रभुजी ने अंतराय ...१... अक वरसने अन्तरे, श्री श्रेयांस कुमार, प्रभु करावे पारणुं, वर्षीतप तिणे सार...२... वैशाखी त्रीजना दिने, धर्मरत्न गुणगाय, अखात्रीज नामे घणो, महिमा लोक गवाय...३... पर्युषण पर्वना चैत्यवंदनो [ १ ] नंद... १... शत्रुंजय श्रृंगार हार, श्री आदि जिणंद, नाभिराया कुळ चंद्रमा, मरूदेवी काश्यप गोत्र इक्ष्वाकु वंश, विनीतानो राय, धनुष पांचसें देहमान, सुवर्ण सम काय...२... वृषभ लंछन धुर वंदिओ, संघ सकळ शुभ रीत, अट्ठाइधर आराधीओ, आगम वाणी विनीत...३... [२] प्रणमुं श्री देवाधिदेव, जिनवर महावीर, सुरवर सेवे शांत दांत, प्रभु साहस धीर...१... पर्व पर्युषण पुण्यथी, पामी भवि प्राणी, जैन धर्म आराधीओ, समकित हित जाणी...२... श्री जिन प्रतिमा पूजीओ, कीजे जन्म पवित्र, जीव जतन करी सांभळो, प्रवचन वाणी विनीत...३... For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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