Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 45
________________ पर्वमाला [४१] [३] कल्प तरुवर कल्पसूत्र, पूरे मन वांछित, कल्पधरे धुरथी सुणो, श्री महावीर चरित...१... क्षत्रिय कुंडे नरपति, सिद्धारथ राय, राणी त्रिसला तणी कुखे, कंचन सम काय...२... पुष्पोत्तरवर थी चव्या, उपज्या पुण्य पवित्र, चतुरा चौद सुपन लहे, उपजे विनय विनीत...३... [४] स्वप्न विधि कहे सुत होशे, त्रिभुवन शृंगार, ते दिनथी ऋद्धे वध्या, धन अखूट भंडार... १... साडा सात दिवस अधिक, जनम्या नव मासे, सुरपति करे मेरुशिखर, उत्सव उल्लासे...२... कुंकुम हाथा दीजिये अ, तोरण झाकझमाळ, हरखे वीर हुलरावीओ, वाणी बिनय रसाळ...३... [५] जिननी बहेन सुदर्शना, भाइ नंदिवर्धन, परणी यशोदा पदमणी, वीर सुकोमल रतन देइ दान संवत्सरी, लेइ दीक्षा स्वामी, कर्म खपावी केवली, पंचमी गति पामी... २... दिवाली दिवस थकीओ, संघ सकल शुभ रीत, अट्टम करी तेलाधरे, सुणजो ओके चित्त...३... [६] पार्श्व जिनेश्वर नेमनाथ, समुद्रविजय विस्तार, सुणीये आदीश्वर चरित्र, श्री जिननां अंतर... १... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org १...

Loading...

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98