Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
View full book text
________________
पर्वमाला
[४६] संवत्सरी दिन सार गणी, बारसा सुणीओ मुदा, चारे कषायो क्रोध मान, माया लोभ करी जुदा, .. मिच्छामि दुक्कडम् महामंत्र, धर्मरत्न वशकर, पर्वमांही गुणनिधि ते, पर्युषण सवि हितकरं.पर्व.५
श्री सिद्धचक्रजीना चैत्यवन्दनो
[१] सुखदायक श्री सिद्धचक्र, अहिनिश आराहो, प्रेम धरीने प्रणमीये, धरी अंग उमाहो...१... त्रिकरण शुद्धे जावजीव, शक्ते आराही, उत्तरोत्तर सुख शाश्वता, जिम सहेजे वरीओ...२... जिनशासनमां अह छ, जिम महामंत्र नवकार, ज्ञानविमलथी जाणीये, अहनो परम आधार...३...
[२] सुललित पद ध्यानथी, परमानंद लही, ध्यान अग्निथी कर्मनां, इंधण पुण दहीओ...१ इति भीति ने रोग शोक, सवि दूर पणासे, भोग संजोग सुबुद्धिता, प्राप्ति सुविलासे...२... सिद्धचक्र तप कीजतांबे, उत्तम प्रभुता संग, मोहन नाण प्रसिद्धता, गंगारंग तरंग...३...
[३] श्री सिद्धचक्र आराधीओ, आसौ चैतर मास, नव दिन नव आंबिल करी, कीजे ओळी खास...१... केसर चंदन घसी घणां, कस्तूरी बरास, पद. अकेकुं दोय हजार, गुणतां पुरे आश...२...
.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98