Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 51
________________ पर्वमाला [४७] जिनवर चैत्य जुहारीओ, गुरु भक्ति विशाळ, प्राये अष्ट भवांतरे, वरीये शिव वरमाळ...४... दर्पणथी निज रूपनो, जुवे सुदृष्टि रूप, दर्पण अनुभव अर्पणे, ज्ञान रयण मुनि भूप...५... आत्मस्वरूप विलोकतां, प्रगट्यो मित्र स्वभाव, . राय उदायी खामणां, पर्व पर्युषण लाब...६... नव वखाण पूजी सुणो, शुक्ल चतुर्थी सीमा, पंचमी दिन बांचे सुणे, होय विराधक नियमा...७... मे नहि पर्वे पंचमी, सर्व समाणी चोथे, .. भवभोरू मुनि मानशे, भाख्युं अरिहा नाथे...८... श्रुत केवली वयणा सुणी, लही मानव अवतार, श्री शुभवीरने शासने, पाम्या जय-जयकार...६... [१२] वडाकल्प पूरव दिने, कल्प घरे लावो, रात्री जगो प्रमुख करी, शासन सोहावो...१... हय गय रथ शणगारीने, कुंवर लावो सुरु पासे, वडा कल्प दिन सांभळो, वीर चरित्र उल्लासे...२... छठ अठम तप कीजिओ, धरी शुभ परिणाम, साहम्मीवच्छल प्रभावना, पूजा अभिराम...३... जिन उत्तम गौतम प्रते, कहे जो अकवीस वार, गुरुमुख पद्म भावशू, सुणतां पामे पार...४... पर्व पजसण आवीया, कीजे व्रत पचखाण, अठाइ दिन अति भलो, पोषा सहित प्रमाण...१... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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