Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 46
________________ [४२] चैत्यवन्दन गौतमादिक स्थविरावळी, शुद्ध सामाचारी, पर्वराय चोथे दिन, भाख्यां गणधारी...२... ज्ञान दर्शन चारित्र तप , जिन धर्मे दृढ चित्त, जिन प्रतिमा जिन सारिखी, वंदु सदा विनीत...३... [७] पर्वराज संवत्सरी, दिन दिन प्रति सेवो, श्लोक बारसे कल्पसूत्र, वीरनं निसुणेवो...१... पाट परंपर बार बोल, भाख्या गुरु हीरे, संप्रति श्री विजयदानसूरि, गच्छाग्रणी धीरे...२... जिनशासन शोभा कहुं, प्रीतिविजय गुरु शिष, विनीतविजय कहे वीरने, चरणे नामं शिश...३... नोंध : बहु जुना पुस्तकमां आ सातनु अकज चैत्यवंदन छ । [८] श्री शत्रुजय मंडणो, श्री आदि जिणंद, पद अरविंद नमे जास, सुर असुर नरिंद...१... काया पंचशय धनुष ऊंच, वृषभांक विराजे, गोमुख जक्ष चक्केसरी, शासन सूरी छाजे...२... नाभी सरोवर वंशमांओ, उग्यो अभिनव सूर, त्रिकरण शुद्ध पूजतां, लच्छी लहे भरपूर...३... पूरण पुन्ये पामीओ. पर्युषण पर्व, पुजा पोसह करो भवि, मूकी मन गर्व...४... जीव अमारी तणो पडह, भावे वजडावो, नवनिधि मंगल मालिका, जिम संपति पावो...५... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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