Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 48
________________ [ ४४ ] वृषभ चरित्र स्थविरावली, यति सामाचारी, भावे सुणतां भवसमुद्र, तरीया नरनारी... १७... संवत्सरीने दिने करो, महा महोत्सव सार, कल्पसूत्र अकवीस वार, सुणीओ सुखकार... १८... बार बोल पट्टावली, धुर सोहम स्वामि, पट्ट परंपरा विजयमानसूरि, शिष्य गुणधामी... १६... कीजे चैत्य परिपाटिका, साहमी खामीजे, पडिकमणुं करी भावशुं, बहु दानज दीजे... २०... विजय आनंद सूरीसरू, तपगच्छ तिलक समान, पंडित हंसविजय तणो, धीर करे गुण गान... २१... [ε] सकल पर्व शृंगार हार, पर्युषण कहीओ, मंत्रमाही 'नवकार मंत्र, महीमा जग लहीओ ... १... आठ दिवस अमारो सार, अट्ठाई पालो, आरंभादिक परिहरी, नरभव नरभव अजुवालो...२... चैत्य परिपाटी साधु, विधि वंदन जावे, अठम तप संवच्छरी, पडिक्कणुं भावे...३... साधर्मिक जन खामणांओ, त्रिविधशु कीजे, साधु मुख सिद्धांत कांत, वचनामृत रस पोजे... ४... नव व्याख्याने कल्पसूत्र, विधि पूर्वक सुणीओ, पूजा नव प्रभावना, निज पातक हणीओ ... ५... चैत्य वन्दन प्रथम वीर चरित्र बीज, पार्श्व चरित्र अंकूर, नेम चरित्र प्रबंध खंध, सुख सम्पत्ति पूर... ६... For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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