Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
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[३८]
चैत्यवन्दन वामादेवी चित्तमां, आनंद अति उभराय, मेरू गीरिवर उपरे, देव देवी हरखाय...२. सर्प लंछन सोहामणो, जगपति ने सोहे. शंखेसरमां भेटता, धर्मरत्न मन मोहे...३
[३] कल्याणक जिन पासन, पोष दशमी दिन जाण, पोष वदि अग्यारशे, संयम पास वखाण.. पोष वदि नवमी थकी, त्रण दिन आराधो, पार्श्वनाथाय नमः वली, अर्हते नमः साधो...२... त्रोजे दिन नाथाय नमः; वीश माला कीजे, अकाशन के अट्टमे, ज्ञानविमल शिव लीजे...३...
मेरू तेरस नु चैत्यवन्दन अयोध्या नयरी भली, अनन्त वीर्य राजन, प्रियमति पटराणी वली, गुणवंता पुरिजन...१.. कोणिक साधु विचरता, आवे वहोरण काज, राजा राणी उल्लसे, वहोरावे मुनिराज...२... पुत्र होशे मुजने कदा, भाखो तेह विचार, मुनि कहे सुणो राजवी, ओ नहीं अम आचार...३... अति आग्रहथी विनवे, भाखे तव मुनिराय, पुत्र होशे पण पांगळो, जन्म थकी महाराय...४... विहार करंता आवता, चउनाणी मुनिराज, गांगिल सूरि सोहामणा, देशना सुणे महाराज...५... जन्म थकी सुत पांगळो, कवण कर्म विरतंत, किण विध कर्म खपे प्रभु, भाखो करुणावंत...६...
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