Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 32
________________ [२८] चैत्य वन्दन चर्तुदशीना चैत्यवंदनो __ कार्तिक चोमासी [१] श्री जिनवरना शासने, चोमासी त्रण जाणुं, कार्तिक चोमासी तणो, महिमा इम वखाणुं...१... कांबल तणी घडी चारने, पाणी पहोरो चार, सुखडी काल अक मासनो, पल्ला चार विचार...२... साधु अने श्रावक वली, आराधे दिन अह, ज्ञानविमल गुरु ओम कहे, पामे दुःखनो छेह...३... फागण चोमासी [२] षट् अट्ठाई जे कही, ते मांहेली अक, फागण चोमासी लही, आराधो सुविवेक...१... कांबलनी घडी दो वली, पाणी पहोरो पांच, सुखडीना दिन वीश छे, पल्ला मुनि त्रण वांच...२... आठ मास छांडे सही, मेवो भाजी विचार, ज्ञानविमल प्रभु शासने, धन धन ते नरनार...३... अषाढ चोमासो [३] चउमासी अषाढ़ नी, मोसम धर्म नी जाण, देव गुरु आराधीओ, सांभळी जिननी वाण...१... मुनिवर पल्ला पांचने, सुखड़ी पंदर दिन, कांबलनो घडी छ कही, पाणी पहोरो तिन...२... पर्युषण दिवाली वली, ज्ञान पांचम गुण गेह, तन मन ध्याने जे करे, ज्ञान विमल लह तेह...३... [४] चौद स्वप्न लहे मावडी, सवी जिनवर केरी, ते जिन नमतां चौद राज, लोके न होय फेरी...१... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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