Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 30
________________ [२६] चैत्यवन्दन जन्म दीक्षा ने नाण भाण, थयां त्रण कल्याण, अकादशी दिन जेहना, प्रणमो सुविहाण...२... ज्ञान विमल गुण मूळ थकी, सुणी अंग अग्यार अगीयारस दिन तप करी, पामो भव जल पार...३. [५] उत्तम तिथि अकादशी, भाखी नेमि जिणंद, मुक्ति वधुनो मांडवो, आदरे कृष्ण नरिंद...१... कल्याणक जिनराजनां, दोढसो इण दिन जाण, ध्यान धरो मन वश करी, पनरे सहस प्रमाण...२ अर जिणंद दीक्षा गृही, नमीने केवल नाण, जन्म दीक्षा केवल लह्यो, मल्लि जिणंद जगभाण...३... भरतादिक दश क्षेत्र में, कल्याणक पचास, अतीत अनागत मेलतां, दोढसो गणी खास. नमतां ने जिणंदने, सुव्रतनी परे जेह, मन वच काया स्थिर करी, कीर्तिचंद्र गुण गेह...५... एकादशी सामान्य [१] शासन नायक वीरजी, प्रभु केवल पायो, संघ चतुर्विध स्थापवा, महसेन वन आयो...१... माधव सित अकादशी, सोमिल द्विज यज्ञ, इन्द्रभूति आदे मल्या, अकादश विज्ञ...२... अकादशसें चउ गुणो, तेहनो परिवार, वेद अर्थ अवलो करे, मन अभिमान अपार...३... जिवादिक संशय हरीओ, अकादश गणधार, वीरे थाप्या वन्दीओ, जिनशासन जयकार...४ . . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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