Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 22
________________ [१८] चैत्य वन्दन - अहवी वाणी स्वमुखे, फरमावे जिनराज, भव्य जिव श्रवणे सुणी, धारे आतम काज...६... मान क्रोध मद परिहरी, धारो शुद्ध स्वभाव, आतमज्ञान नये गृही, आनन्दधन रस पाव...१०... शांति सुधारस गुणभर्या, अनुभव भाव जिणंद, चरण तेज अमृत समो, रत्नमुनि आणंद...११. उज्ज्वल अष्टमी दिन कयुं, समकीति ने सुखदाई, चंद्रमुनि गुण योग्यता, लहि आगम गुण छाई...१२... चतर वदि आठम दिने, मरुदेवी जायो, आठ जाति दिशिकुमरी, आठे दिशी गायो...१... आठ इन्द्राणी नाथशें, सुर संगते लई आवे, सुरगिरि उपर सुरवरा, सर्वे मली गावे...२... आठ जाति कलशा भरी, चोसठ हजार, दो सय ने पचास मानो, अभिषेक उदार...३... अक क्रोड ने साठ लाख, ऊंचा शतकोष, पहोळपणे अडियाल कोष, कलशा जलकोष. चार रिखभ अड शृंग रंग, आठे जल धारे न्हवरावी जिनराजने, सुरेन्द्र पाप परवाले...५... क्षुद्रादिक अड दोष शोष, करी अडगुण पेखो, टालो आठ प्रमाद आठ, मंगल आलेखो...६... क्रोडी आठ चउगुणा, कंचन वरसावे, प्रभु सोंपी निज मातने, नन्दीश्वर जावे...७... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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