Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 20
________________ [१६] चैत्य वन्दन नामा आठ जाति कलशे करी अ, नवरावो जिनराय, आठ योजन जाडी कही, सिद्ध शिला मुनिराय...६... पूजा अष्ट प्रकार नी, समजो करो तस मर्म, अष्टमी करता प्राणोओ, क्षय करे आठे कर्म...७ दूर करी आठ दोष ने, तिम अड गुण पाळो, ज्ञान दर्शन चारित्र ना, आठ अतिचार टाळो...८... आठ आठ प्रकारना ओ, भेद अनेक प्रकार, अष्टमी फल प्रभु भाखीआ, त्रिगडे बेसी सार. फागण वदी आठम दिने, मरु देवी जायो, दीक्षापण तेहिज दिने, सुर नर मली गायो...१०... सुमति अजित जन्म सार, सम्भव जिन च्यवन, आठम दिन बहु जाणजो, कल्याणक निधि भवन....११... अष्टमी तप भवियण करे ओ, कर्म तपावे जेह, तप करतां जस संपजे, शुभ फल पामे तेह...१२... . [४] महाशुदि आठम दिने, विजया सुत जायो, तेम फागण शुदि आठमे, सम्भव चवि आयो...१... चैतर वदनी आठमे, जन्म्या ऋषभ जिणंद, दीक्षा पण अ दिन लही, हुआ प्रथम मुनिचंद...२... माधव शुदि आठम दिने, आठ कर्म कर्या दूर, अभिनन्दन चोथा प्रभु, पाम्या सुख भरपूर...३... अहिज आठम उजळी, जन्म्या सुमति जिणंद, आठ जाति कलशे करी, न्हवरावे सुर इंद...४... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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