Book Title: Chaityavandan Parvamala
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 15
________________ पर्वमाला नाण दंसण आवरण मोह, अंतराय घनघाती, कर्म दुष्ट उच्छेदीने, श्रया परमातम जाती... ४... दोय धरम सवि वस्तुना, समयांतर उपयोग, प्रथम विशेषपणे गृहे, बीजे सामान्य संयोग... ५... सादि अनंत भागे करी ओ, दर्शन ज्ञान अनंत, गुण ठाणु लही तेरमु, भाव जिणंद जयवंत... ६... मूल पयडीनो ओक बंध, सत्ता उदये चार, उत्तर पयडीनो अक बंध, उदये रहे बायाल... ७... सत्ता पंचासी तणी, कर्म जेहवा रज्जू छार, मन वच काय योग जास, अविचल अधिकार... ८... सयोगी केवली तणी ओ, पामी दशाये विचरे, अक्षय केवल ज्ञानना, विजयलक्ष्मी गुण उचरे... ६... [] बुद्धि खोडीय बुद्धि थोडीय, जिभ मुखे अंक... १... महिमा जस महीमंडले, जलधि जेम गुरु गुहीर गाजे, त्रिभुवनमा उपमान को, तुम्ह समान जे वस्तु छाजे...२... ज्ञानविमल गुण प्रभु तणा, भाखी शके कहो कोय, जाणे पण न कही शके, अक्षय ज्ञान जो होय... .३... [१०] चढीक्षपक श्रेणी अपूर्व उत्साह धरीने, लहे गुणठाणु बारम् संजलण हरीने... १... नाण दंसणावरण कर्म, अंतराय उच्छेदी, गुण ठाणु लही तेरमु, प्रभु थया अवेदो...२ Jain Education International For Private & Personal Use Only [११] www.jainelibrary.org

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