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पर्वमाला
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अवधिज्ञान - चैत्यवन्दन
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अवधिज्ञान त्रीजुका , प्रगटे आत्म प्रत्यक्ष, क्षय उपशम आवरणनो, नवि इंद्रिय आपेक्ष...१... देव निरय भव पामतां, होय तेहने अवश्य, श्रद्धावंत समय लहे, मिथ्यात विभंग वश्य...२... नर तिरिय गुणथी लहे, शुभ परिणाम संयोग, काउस्सग्गमां मुनि हास्यथी, विघट्यो ते उपयोग.... जघन्य थी जाणे जुओ, रूपो द्रव्य अनंता, उत्कृष्टा सवि पुद्गला, मूत्ति वस्तु मुणंता...४... क्षेत्र थी लघु अंगुल तणो, भाग असंखित देखे, तेहमां पुद्गल खंध जे, तेह ने जाणे पेखे...५. लोक प्रमाणे अलोकमां, खंड असंख उक्किट्ट, भाग असंख्य आवलि तणो, अद्धा लघुपणे दिट्ठ...६... उत्सपिणि अवसपिणि), अतीत अनागत अद्धा, अतिशय संख्या तिगपणे, सांभळो भाव प्रबंधा...७... ओक ओक द्रव्यमां चार भाव, जघन्यथी ते निरखे, असंख्याता द्रव्य दीठ, पर्यव गुरु थी परखे...८. चार भेद संक्षेपथी अ, नंदी सूत्र प्रकाशे, विजयलक्ष्मीसूरि ते लहे, ज्ञान भक्ति सुविलासे...६...
मनः पर्यव ज्ञान नु चैत्यवन्दन
[७] श्री मनः पर्यव ज्ञान छे, गुण प्रत्ययी ओ जाणो, अप्रमादि ऋद्धिवंतने, होय संयम गुण ठाणो...१...
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