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त्रिलोचनं
४५८
त्रुटित
मा
त्रिलोचनं (नपुं०) त्रिनेत्र।
त्रिवेदी (वि०) पु, नपुं और स्त्रीलिंग का जानने वाला। तीन त्रिवर्णकं (नपुं०) तीन वर्गों का समाहार। क्षत्रिय, बाह्मण और वेद जानने वाला। त्रयो वेदा अस्यसन्तीति त्रिवेदि, त्रिवेदि वैश्य।
विकल्पनमेव आयुर्जीवनं यस्य स। (जयो० १/७६) त्रिवर्गः (पुं०) तीन वर्ग-धर्म, अर्थ और काम। (दयो०पृ० त्रिशङ्क (वि०) बीच में लटका हुआ। ३३)
त्रिशङ्कः (पुं०) राजा, हरिश्चन्द्र का पिता। त्रिवर्गनिष्यन्न (वि०) तीन वर्गों से युक्त। (जयो० १/२८) त्रिशला (स्त्री०) महावीर की माता का नाम। कुण्ड ग्राम के त्रिवर्गपरिणायक (वि०) १. त्रिवर्गमार्ग से गमन करने वाले। २.
राजा सिद्धार्थ की रानी त्रिशला। (वीरो० ६/४३) कु, चु, टु वर्ण से मंडित होने वाले। "त्रिवर्णाणां त्रिशलाखनी (स्त्री०) त्रिशलादेवी की कुंख। (वीरो० ६/४३) धर्मार्थ-कामानां यद्वा त्रिवर्णाणां कु चु टुनामेव
विशिखं (नपुं०) त्रिशूल। परिणायकेऽधिकारिणि जयकुमारे तिष्ठति। अमात्यादीनां
त्रिशिरस् (पुं०) त्रिशूल। वर्गः समूहस्तेन मण्डिते सेविते। (जयो० ३/२०)
त्रिशुद्धि (स्त्री०) मन, वचन और काम की शुद्धि। (सम्य० त्रिवर्ग-परिणाम-संग्रही (वि०) तीनों वर्गों का संग्राहक
७८, वीरो० १७/८) 'त्रिवर्गस्य परिणाम।
त्रिशूलिन् (पुं०) शिव। संग्रहातीति त्रिवर्गपरिणामसंग्रहीधर्मादित्रिवर्ग-संग्राहको
त्रिषष्टिः (स्त्री०) तिरेसठ। भवतीत्याशयः'। (जयो० २/२१)
त्रिषष्टि-पुरुाचरितं (नपुं०) प्रथमानुयोग लक्षण। तिरेसठ महा त्रिवर्गमार्गः (पुं०) त्रिपथ, तीन वर्ग का पथ त्रिवर्गगुणित,
शलाका पुरुषों का चरित्र। (जयो० १६१) (हि०वा० ७) त्रिवर्गमागणो नाभिन्नदनस्य' (हि०सं० ३६)
त्रिशृङ्कः (पुं०) त्रिकूट पर्वत।
त्रिसंयोगी (वि.) तीन संयोग वाला। (वीरो० १९/६) त्रिवर्गभावः (पुं०) धर्म, अर्थ और काम भाव। (वीरो० ३/९) त्रिवर्गसंसाधनं (नपुं०) तीन वर्गों की साधना-धर्म, अर्थ और
त्रिसन्ध्यं (नपुं०) तीन सन्ध्या।
त्रिसन्ध्यी (स्त्री०) तीन सन्ध्या। काम पुरुषार्थ की साधना। (दयो० ३३)
त्रिसप्तत (वि०) तिहत्तरवा। त्रिवर्गसम्पत्तिः (स्त्री०) तीन वर्ग का सम्पादन-'त्रिवर्गस्य
त्रिसप्तन (वि०) तीन बार सात। धर्मार्थकामत्रिवर्गस्य तस्य सम्पत्तिसपादनम्' (जयो०७०
त्रिसाम्य (वि०) तीनों की समानता। १/३९) 'कु-चु-टु' इति त्रयाणां वर्गाणां समाहारस्त्रिवर्ग
त्रिसूत्रिन् (वि०) रेखात्रय युक्त। (जयो० ५/५०) तस्य सम्पत्तिः' (जयो०वृ० १/३९)
त्रिस्थली (स्त्री०) तीन पवित्र स्थान। त्रिवर्गसम्पादनं (नपं०) धर्म, कर्म और शर्म का सम्पादन या
त्रिस्रोतस् (स्त्री०) तीन स्रोता धर्म, अर्थ औ सुख का सम्पादन। (जयो० १२/४८)
त्रिसीत्थ (वि०) तीन बार जीता हुआ। त्रिवलि (स्त्री०) तीन रेखाएँ। (जयो० १६/८१,
त्रिहायण (वि०) तीन वर्ष का। त्रिवलित (वि०) कटि, हृदय और ग्रीवा को झुकाने वाला।
त्रिंश (वि०) तीसवां। मस्तिष्क पर तीन रेखाएँ उत्पन्न करने वाला।
त्रिंशक (वि०) तीस से युक्त। त्रिवार (अव्य०) तीन वार, तीन प्रकार से।
त्रिंशत् (स्त्री०) तीस। त्रिविक्रमः (पुं०) विष्णु।
त्रीणि (नपुं०) तिस्त्रः (स्त्री०) त्रिविध (वि०) तीन प्रकार का।
त्रुट् (सक०) तोड़ना, फाड़ना, चीरना, टुकड़े करना। त्रुट्यन् त्रिविष्टपं (नपुं०) स्वर्गलोक, इन्द्रलोक। (वीरो० १/२३) (जयो० ७/१०७) त्रोटयित्वा (जयो० २३/३७)
समुल्लसत्कल्पलतैकतन्तु त्रिविष्टपं काव्यमुपैम्यहन्तु' | त्रुटि: (स्त्री०) [त्रुट्+इन्] अपघात, भूल, कमी (जयो० (वीरो० १/२३)
१२/१३६) 'भो महाशयाः, वो अस्माकमातिथ्येऽतिथिसत्कारे त्रिवेणी (स्त्री०) तीन नदियों के मिलन का स्थान, गंगा यमुना नस्त्रुटिरेव' (जयो० १२/१३६) १. काटना, तोड़ना, फाड़ना, __ और सरस्वती का संगम स्थला
२. सन्देह, अनिश्चिता, ३. हानि, नाश। ४. छोटी इलायची। त्रिविशुद्धिः (स्त्री०) मनोवाक्काय शुद्धि। (जयो० १२/२९) | त्रुटित (वि०) भ्रंश, नष्ट।
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