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त्रिपञ्चाश
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त्रिलोकीनाथ:
त्रिपञ्चाश (वि०) तिरेपनवां।
त्रिभुवनजयिन् (वि०) तीनों लोकों को जीतने वाला। (दयो० त्रिपञ्चाशत् (स्त्री०) तिरेपन।
११६) त्रिपत्रकं (नपुं०) ढाका
त्रिभुवनपतिः (पुं०) तीन भुवन के स्वामी। (जयो० ६/११५) त्रिपथ (नपुं०) गंगा। (दयो० ९३/
त्रिभूमः (पुं०) तीन मंजिल, तीन माला वाला भवन। त्रिपदं (नपुं०) तीन पैर।
त्रिमार्ग (पुं०) त्रिपथ, तिराहा, १. रत्नत्रय। दर्शन, ज्ञान और त्रिपदिका (वि०) तीन पैर वाला।
चारित्र की एकरूपता। त्रिपदी (स्त्री०) १. हस्ति तंग। २. तीन पद वाली। त्रिमार्गा (स्त्री०) गंगा नदी। विपरीत्य (वि०) तीन प्रदक्षिणा युक्त। (दयो० )
त्रिमार्गानुगामिन् (वि०) १. त्रिमार्गपथिक, २. रत्नत्रयात्मक। त्रिपर्णः (पुं०) ढाक तरु।
(जयो० ३/११४) त्रिपाद (वि०) तीन पैरों वाला।
त्रिमुकुटः (पुं०) तीन शिखर का पर्वत। त्रिपुट (वि०) त्रिभुजाकार।
त्रिमुखः (पुं०) बुद्ध का विशेषण। त्रिपुटः (पुं०) १. बाण, २. हथेली, ३. एक हस्त प्रमाण। तट, त्रिमदः (पुं०) तीन मद। किनारा।
त्रिमूर्तिः (स्त्री०) तीन मूर्ति। त्रिपुटकः (पुं०) त्रिकोण, त्रिभुज।
त्रिमेखला (स्त्री०) तीन लड़ी, की करधनी, तीन कटनी की त्रिपुण्डू (नपुं०) चन्दन।
मेखला। (वीरो० १३/३) त्रिपुरं (नपुं०) तीन नगर, तीन स्थान। (जयो० १९/४१) त्रियष्टिः (स्त्री०) तीन लड़ी, हार की तीन लड़ी, तीन लड़ी त्रिपुरारि (पुं०) शिव। त्रिपुरारि-रुद्र-उमा च तस्या श्री पार्वती वाला हार। (जयो० १९/४१)
त्रियामा (स्त्री०) तीन रात का समय। त्रिपुरादिराट् (पुं०) नाभेय, आदीश्वर, आदिनाथ, प्रथम जिन | त्रियोगः (पुं०) मन, वचन और काम योग।
तीर्थंकर ऋषभदेव (जयो० २६/६३) 'त्रिपुराणां जन्म- त्रियोनिः (स्त्री०) तीन योनियां। जरामरणाख्यानामरिराजो नाभेयस्य' (जयो० २६/६८) त्रिरजनी (स्त्री०) तीन रात। ० शिव, शंकर।
त्रिरात्रं (नपुं०) तीन रात। त्रिपुरु (पुं०) प्रपितामह, पितृमह। (जयो० १२/१४५) विरत्नं (नपुं०) तीन रत्न-दर्शन, ज्ञान और चारित्र ये तीन त्रिपूरुषी (स्त्री०) गोत्रशाखोच्चारण, गोत्रोच्चारण।
अध्यात्म रत्न हैं, इन्हें सर्वोत्कृष्ट रत्न कहा गया है। त्रिपौरुष (वि०) तीन पीढ़ियों से सम्बंधित।
त्रिरेखः (पुं०) शंख। त्रिप्रस्तुतः (पुं०) मदास्राव वाला हस्ति।
विलिंग (वि०) तीनों लिंगों में प्रयुक्त होने वाला। त्रिपृष्टः (पुं०) पोदनपुरी राजा प्रजापति की द्वितीय रानी त्रिलोकं (नपुं०) तीन लोक, त्रिभुवन। मृगावती का पुत्र। (वीरो० ११/१७)
त्रिलोकनाथः (पुं०) तीनों लोकों के स्वामी। (वीरो० १३/१०) विशाखभूतिर्नभसोऽत्र जातः प्रजापतेः श्रीविजयो जयातः। | त्रिवोकपतिः (पुं०) तीनों लोकों के अधिपति। मृगावतीतस्तनयस्त्रिपृष्ठ नाम्नाऽप्यहं पोदपर्युथातः। (वीरो० त्रिलोकप्रज्ञप्तिः (स्त्री०) तीन लोकों के विषय को प्रतिपादित ११/१७)
__ करने वाली एक रचना त्रिलोकप्रज्ञप्ति, यतिवृषभाचार्य त्रिफला (स्त्री०) तीन फलों का संघात, हर्ड, बहेड़ा और कृत गणित, ज्योतिष सम्बन्धी रचना। (हि० २६) आंवला समूह का चूर्ण।
त्रिलोकसारः (पुं०) नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती द्वारा रचित त्रिबली (स्त्री०) तीन रेखाएं, नाभि के ऊपर होने वाली रेखा। रचना, जिसमें भूगोल, गणित एवं ज्योतिषादि के विषय त्रिविघ्न (वि०) तीन बाधाएं।
को व्यक्त किया गया है। त्रिभद्रं (नपुं०) मैथुन, संभोग।
त्रिलोकी (वि०) तीनों लोकों वाले। (सुद० २/१५) 'त्रिलोकानां त्रिभुजं (नपुं०) त्रिकोण।
समाहारिस्त्रलोकी' (जयो० ५/८३) त्रिभुवनं (नपुं०) तीन लोक।
त्रिलोकीनाथः (पुं०) तीनों लोकों के अधिपति। (वीरो० १३/१०)
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