Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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के अनेक बिम्ब बिखेरती है। स्व० प्रो० शास्त्री एक संलेखक थे एवं संस्कृत, प्राकृत तथा हिन्दी भाषाओं पर समान अधिकार रखते थे। भगवान महावीर के पच्चीससौवें निर्वाणोत्सव के शुभ अवसर पर उन्होंने “ तीर्थंकार महावीर और उनकी आचार्य परम्परा" नामक एक ऐतिहासिक कृति की रचना की जिसके चार खण्डों में मुनि परम्परा के सम्पूर्ण इतिहास को बड़ी गहराई से उन्होंने अभिलेखित किया है। यह ग्रन्थ अ०भा०दि० जैन, विद्वत्परिषद द्वारा प्रकाशित किया गया था। इसकी अनुपलब्धता को देखते हुए एवं नई पीढ़ी को परम्पराजन्य प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से, इस महाग्रन्थ के चारों भागों को पुनप्रकाशित कराने की योजना, मेरे गया के वर्षायोग के समय, रखी गयी थी। मुझे प्रसन्नता है कि गया तथा रफीगंज जैन समाज एवं शांतिसागर छाणी ग्रन्थमाला ने इस गुरुकार्य को निष्ठापूर्वक सम्पन्न किया। प्रो० शास्त्री के विशाल रचना संसार में से कुछ प्रतिनिधि लेखों को भी चयनित कर अ०भा०दि० जैन विद्वत्परिषद ने दो खण्डों में उपरोक्त वर्णित शीर्षक के अन्तर्गत प्रकाशित किया था। इस पुस्तक के प्रथम खण्ड में भाषा - विज्ञान, साहित्य तथा जैन धर्म-दर्शन से सम्बन्धित इकतीस शोध आलेख संकलित किये गये हैं एवं द्वितीय खण्ड में जैन न्याय एवं तत्व मीमांसा, जैन तीर्थ, इतिहास, कला संस्कृति एवं राजनीति, भक्ति, संगीत एवं ललित कलायें तथा ज्योतिष एवं गणित से सम्बन्धित सैंतीस शोध लेखों का समवाय किया गया है। विलक्षण प्रतिभा के धनी डा० शास्त्री का साहित्य प्रणयन संस्कृति, साहित्य भाषा दर्शन आदि के क्षेत्र में शोध के नये मार्गो का उद्घाटन करता है एवं करता है श्रुत-आराधन/चिन्तन/मनन तथा मौलिक प्रणयन के नये आयामों की खोज भी। एक समर्पित विद्वान की सर्जना का यह कालजयी संसार जिनवाणी के आराधकों की नयी पीढ़ी को प्रेरणा दे एवं शोध के नित नए मार्गो को प्रशस्त कर सम्पूर्ण भारतीय साहित्य संसार की श्री वृद्धि के लिए एक प्रेरक प्रसंग बन सके, ऐसी मेरी भावना है। इस शुभ कार्य के लिये मेरे मंगल आशीर्वाद हैं।
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उपाध्याय ज्ञानसागर