Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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आशीर्वचन
हमारे अन्तस में व्याप्त संस्कृति की रचना और विकास की चिरन्तन धारा, आदान-प्रदान के माध्यम से वृद्धिगंत हो सतत् प्रवाहमान होती रहती है। यह मन, आचार और रुचियों का परिष्कार कर अन्तःकरण की परिशुद्धि तथा उसे जाग्रत करने के उपक्रम में सन्नद्ध भी रहती है। मोहनजोदड़ो हड़प्पा आदि की सभ्यता से भारत की सामासिक संस्कृति, समृद्ध रूप से उद्भूत हो आर्यो तथा द्रविड़ों के समन्वित योगदान की साक्षी रही है। इस विकास - यात्रा को गति देने का गुरु- कार्य किया है भाषा ने और उसे जीवन्त किया है उसमें रचे जाने वाले साहित्य ने। धार्मिक भावनाओं से प्रेरित हुए साहित्य सर्जन के अनगिनत बिम्ब, काल के प्रवाह में उभरे हैं जिससे साहित्य की आध्यात्मिकता, नैतिक विन्यास एवं व्यावहारिक उपयोगिता तथा सन्तुलन, अपने प्रशस्त रूपों में सहजता से प्रतिष्ठित हो सके हैं। साहित्याकाश में जैन साहित्य का उज्ज्वल नक्षत्र, प्रकृति में जड़ और चेतन तत्वों की सत्ता को स्वीकार कर चेतन को जड़ से उठाने और परमतत्व की प्राप्ति की कला के प्रतिपादन की मौलिकता को उद्भासित करता एक मात्र अनूठा और अनुपम प्रकाशपुंज है, क्योंकि विश्व के अनादि - अनन्त प्रवाह में जड़ चेतन रूप द्रव्यों के नाना रूपों और गुणों के विकास के लिये इस दर्शन में ईश्वरीय इच्छा एवं अधीनता को स्वीकार नहीं किया गया, प्रत्युत जीव और अजीव तत्वों के परिणामी नियत्व गुण के समवाय द्वारा ही समस्त विकार और विकास के उत्पाद - व्यय ध्रौव्यात्मक स्वरूप की द्रव्य-गुण- पर्यायमूलक पहचान को रेखांकित कर व्यक्ति स्वातन्त्रय को दार्शनिक चिन्तन के प्राणरूप में समाहित किया गया है। यही कारण है कि जैन वाङ्मय का समेकित अनुशीलन, लौकिक एवं लोकोत्तर विवेचन, भारतीय संस्कृति के विकास में जैन संस्कृति के अवदानों के विराट स्वरूप को आदर पूर्वक प्रतिष्ठापित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करने के अतिरिक्त काल - चिन्तन को एक निर्णायक मोड़ पर ला सकने में भी सफल हो सका है।
“ भारतीय संस्कृति के विकास में जैन संस्कृति का अवदान' एक कालजयी श्रुत - आराधक स्व० प्रो० डा० नेमिचन्द्र शास्त्री की अहर्निश श्रुत साधना की फलश्रुति है, जो उनकी बहुमुखी प्रतिभा के चतुर्मुखी विस्तार
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