Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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इस आदर्श तपस्वी और महान विचारक के द्वारा धर्म के वास्तविक स्वरूप की प्रतिष्ठा एवं रूढ़ियों के समापन में सन्नद्ध सत्य की शाश्वतता के अनुसंधि त्सुओं/जिज्ञासुओं के प्रति अनुराग के प्रति सभी नतमस्तक हैं। जिनवाणी के आराधकों को उनके कृतित्व के आधार पर प्रतिवर्ष श्रुत संवर्द्धन संस्थान के अवधान में सम्मानित करने की योजना का क्रियान्वयन पूज्य उपाध्याय श्री के मंगल आर्शीवाद एवं प्रेरणा से सम्भव हो सका है। यह संस्थान प्रतिवर्ष श्रमण परम्परा के विभिन्न आयामों में किये गये उत्कृष्ट कार्यों के लिये पांच वरिष्ठ जैन विद्वानों को इकतीस हजार रूपयों की राशि से सम्मानित कर रहा है। संस्थान के उक्त प्रयासों की भूरि-भूरि सराहना करते हुए बिहार के तत्कालीन राज्यपाल महामहिम श्री सुन्दरसिंह जी भण्डारी ने तिजारा में पुरस्कार समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा था कि विलुप्त हो रही श्रमण परम्परा के साधकों के प्रज्ञान गुणानुवाद की आवश्यकता को इस तपोनिष्ठ साधक ने पहचान कर तीर्थंकर महावीर की देशना को गौरवमण्डित करने में महायज्ञ में जो अपनी समिधा अर्पित की है वह इस देश के सांस्कृतिक इतिहास का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं प्रेरक प्रसंग है, जिसके प्रति युगों-युगों तक इस देश की बौद्धिक परम्परा ऋणी रहेगी। गुणानुवाद के प्रतिष्ठापन के इस प्रक्रम को अधिक सामयिक बनाने के उद्देश्य से श्रमण परम्परा के चतुर्दिक विकास में सम्पूर्णता में किये गये अवदानों के राष्ट्रीय स्तर पर किय गये आकलन के आध पर पर एक लाख रूपयों की राशि के पुरस्कार का आयोजन इक्कीसवीं सदी की सम्भवतः पहली रचनात्मक श्रमण घटना होगी। पूज्य गुरूदेव का मानना है कि प्रतिभा और संस्कार के बीजों को प्रारम्भ से ही पहचान कर संवर्द्धित किया जाना इस युग की आवश्यकता है। इस सुविचार को राँची से प्रतिभा सम्मान समारोह के माध्यम से विकसित किया गया जिसमें प्रत्येक वय के समस्त प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं का सम्मान, बिना किसी जाति/धर्म के भेद-भाव के किया गया। गुणानुवाद की यह यात्रा गुरुदेव के बिहार से विहार के साथ प्रत्येक ग्राम, जनपद
और नगरमें विहार कर रही है और नयी पीढ़ी को विद्यालयों से विश्वविधालयों तक प्रेरित कर रही है, स्फूर्त कर रही है।
परम पूज्य उपाध्याय 108 श्री ज्ञानसागर जी महाराज वर्तमान युग के एक ऐसे युवा दृष्टा, क्रान्तिकारी विचारक, जीवन-सर्जक और आचारनिष्ठ दिगम्बर संत हैं जिनके जनकल्याणी विचार जीवन की आत्यांतिक गहराइयों, अनुभूतियों एवं साधना की अनन्त ऊंचाइयों तथा आगम प्रामाण्य से उद्भूत हो मानवीय चिन्तन के सहज परिष्कार में सन्नद्ध हैं। पूज्य गुरूदेव के उपदेश हमेशा जीवन-समस्याओं/सन्दर्भो की गहनतम गुत्थियों के मर्म का संस्पर्श करते हैं, जीवन को उनकी समग्रता में जानने और समझने की कला से परिचित कराते हैं।
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