Book Title: Bhaktamara Darshan
Author(s): Rajyashsuri
Publisher: Jain Dharm Fund Pedhi Bharuch

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Page 28
________________ Geeeeeeeeeee0000000 विवेचनकार और आधुनिक लेखक से भी बहुत कुछ मिला है । इस ग्रंथ में श्रेष्ठ रीति से उनका संयोजन है | मैं परमात्मा के महान शासन को तथा पूज्य आचार्य देव मानतुंगसूरीश्वरजी म.सा. आदि महान गुरु भगवंतो के चरण में; नत मस्तक हुँ ! जिन्होंने “भक्तामर सूरि" का पद पाया है, ऐसे मेरे गुरुवर पू. आ. देव विक्रमसूरीश्वरजी महाराजा के पवित्र चरणों में तो मेरी अनंत-अनंत-अनंत वंदना है। उनके अनेक उपकार के प्रत्युपकार का कोई मार्ग ही नहीं है, पर आज इस ग्रंथ के सर्जन से उनको परमानंद होगा... यह निश्चित्त है । वे दिव्याशिष की वृष्टि आज पर्यंत कर रहे हैं और भी जोर से अधिक वृष्टि करेंगे... यही अभिलाषा है । मेरे संपादन कार्य में जो आधुनिक ग्रंथकर्ता एवं अनेक महानुभाव सहायक हुओ हैं, उसका उल्लेख मैं ने गुजराती संपादकीय में किया है । परामर्शदाता मंडल-ग्रंथ प्रकाशन, प्रेरणाकर्ता, प्रकाशन आयोजक, प्रकाशक विगरह सबकी नामावली ग्रंथ में है । यहाँ पुनः उन सभी की स्मृति करके उन्हें अंतर के आशिष एवं धन्यवाद प्रदान करता हुँ । आशा है... यह विशाल काय ग्रंथ प्रत्येक भक्तामर स्तोत्र प्रेमी को धन्य बनायेगा । जिस तरह से इस ग्रंथ के संपादन एवं लेखन ने मझे बहत ग्रंथो के स्वाध्याय का लाभ प्रदान किया है, ठीक उसी तरह प्रत्येक पाठक भक्तामर के स्वाध्याय एवं ध्यान से लाभान्वित बनें... “आत्मा से परमात्मा बनें" । -6000000000000000000000000000 वीश विहारमान जिन जन्मकल्याणकदिन तथा स्वकीयजन्मदिन चैत्र वद-१०, वि.सं. २०५३ महावीर भुवन, मैसुर (कर्णाटक) 8666666666666SSSSSSSSSSSC लब्धि-विक्रम गुरू चरण रेणु मिस यशर, का रोज भक्तामर ध्यावता, गुरू विक्रम सूरिराय ८७ दिव्यकृपा वेरी रह्या, हैये हरख न माय ध्यानथी तेहना कार्यमां, राजनो यश पमाय लब्धिना भंडारमां, रत्नो अखूट समाय - 80000000000000000000 _Jah Education International 2010_04 Jah Education international 2010_04 ) For Private & Personal Use Only For private & Peponal use only Laww.jainelibrary.org

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