Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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के चचेरे भाई थे, इन्हें 'अरिष्टनेमि' भी कहा जाता है। शौरीपुर नरेश 'अन्धकवृष्टि' के दस पुत्र हुये। सबसे बड़े पुत्र का नाम 'समुद्रविजय' और सबसे छोटे पुत्र का नाम 'वसुदेव' था। 'समुद्रविजय' के घर 'नेमिनाथ' ने जन्म लिया और 'वसुदेव' के घर 'श्रीकृष्ण' ने। 'जरासन्ध' के भय से यादवगण शौरीपुर छोड़कर द्वारका नगरी में जाकर रहने लगे। वहाँ जूनागढ़ राजा की पुत्री राजमति से नेमिकुमार का विवाह निश्चित हुआ। बड़ी धूमधाम के साथ बारात जूनागढ़ के निकट पहुँची । नेमिनाथ बहुत-से राजपुत्रों के साथ रथ में बैठे हुए आस-पास की शोभा देखते हुए जा रहे थे। उनकी दृष्टि एक ओर गई, तो उन्होंने देखा बहुत-से पशु एक बाड़े में बन्द हैं, वे निकलना चाहते हैं, किन्तु निकलने का कोई मार्ग नहीं है। नेमिनाथ ने तुरन्त सारथी को रथ रोकने का आदेश देते हुए पूछा कि "इतने पशु इस तरह क्यों रोके हुये हैं?" सारथी के द्वारा नेमिनाथ को यह जानकर बड़ा दुःख हुआ कि उनकी बारात के सत्कार के लिये इन पशुओं का वध किया जाने वाला है। उनको भारी मानसिक कष्ट हुआ और बोले “यदि मेरे विवाह के निमित्त इतने पशुओं का जीवन संकट में है, तो धिक्कार है ऐसे विवाह को । अब मैं विवाह नहीं करूँगा।" वे रथ से नीचे उतर पड़े और मुकुट व कंगन को फेंककर वन की ओर चल पड़े। उनको वैराग्य हो गया तथा वे सत्य की तलाश में निकल पड़े। ऐसी मान्यता है कि वे पास में ही स्थित गिरनार पर्वत पर चढ़ गये और सभी परिधान छोड़कर दिगम्बर मुनिव्रत अंगीकार करके आत्मध्यान में लीन हो गये और पर्याप्त तप:साधना करके केवलज्ञान को प्राप्त कर गिरनार से ही निर्वाण लाभ किया । 16 इनकी होनेवाली पत्नी राजकुमारी राजमति ने भी दीक्षा ले ली और वे जैनधर्म के प्रचार में संलग्न हो गई । नेमिनाथ और राजमति के जीवन-प्रसंग को लेकर बड़ी संख्या में विविध रोचक काव्य रचे गये हैं। जीवदया एवं अहिंसा की प्रतिष्ठापना में इनका बड़ा योगदान माना जाता है । 17 तीर्थंकर पार्श्वनाथ
पार्श्वनाथ 23वें तीर्थंकर थे। इनका जन्म वाराणसी नगर के राजा अश्वसेन एवं माता वामादेवी के पुत्र के रूप में हुआ। इनकी चित्तवृत्ति आरम्भ से ही वैराग्य की ओर थी। इनकी लौकिक एवं राजनीतिक कार्यों में कोई रुचि नहीं थी । माता-पिता ने अनेक बार इनसे विवाह का प्रस्ताव रखा, किन्तु उन्होंने सदा टाल दिया । एक दिन वे अपने साथियों के साथ वनभ्रमण को जा रहे थे कि मार्ग में पंचाग्नि तप करता हुआ एक तपस्वी दिखाई दिया। वे उसके पास पहुँचे और पूछा, " इन लकड़ियों को जलाकर क्यों जीव हिंसा करते हो?" तपस्वी पार्श्वनाथ की बात सुनकर क्रोधित हो गया। उसने पूछा कि " मैं तपस्या कर रहा हूँ, इसमें हिंसा कहाँ से आ गयी?" तब पार्श्वकुमार बोले कि इस मोटी लकड़ी के अन्दर एक नाग-नागिन का जोड़ जल रहा है और मरणासन्न है।" तब उस तपस्वी ने कुल्हाड़ी उठाकर
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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