Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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जीते-जी अपने शिष्यों में से किसी एक को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर देते हैं। जब पूर्ववर्ती भट्टारक द्वारा अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया जाता है, तो उनके अनुयायी जाति-विशेष के लोग उसे पद सौंप देते हैं। यह प्रथा हुम्मड़, मेवाड़ा, नरसिंहपुरा एवं खण्डेलवाल जातियों में प्रचलित है। भट्टारक की नियुक्ति की एक अन्य व्यवस्था भी है। इस पद्धति के द्वारा उत्तराधिकारी का चयन पूर्ववर्ती भट्टारक के शिष्यों में से अनुयायी जाति के लोगों के द्वारा उत्तराधिकार का चयन किया जाता है। यह कार्य जाति-विशेष के प्रतिनिधियों के द्वारा किया जाता है, जिन्हें 'पंच' कहते हैं। सेतवाल, चतुर्थ, पंचम, उपाध्याय, बोगरा, वैश्य एवं क्षत्रिय जातियों में यह प्रथा आमतौर पर प्रचलित है। 'कर्नाटक' में भट्टारकों की नियुक्ति में सरकार की सहमति आवश्यक होती है, वहाँ जनता के स्थान पर सरकार को भट्टारक-नियुक्ति के मामले में अधिक अधिकार प्राप्त हैं।20 एक बार भट्टारक के नियुक्त हो जाने के पश्चात् उसे उसके पद से नहीं हटाया जा सकता, चाहे वह अपने कर्तव्यों के पालन में असफल हो जाये अथवा अपने पद का दुरुपयोग करे। भट्टारक को पदच्युत करने का मामला कभी सुना नहीं गया। वर्तमान में केवल हुम्मड़, मेवाड़ा जाति यह दावा करती है कि 'वे भट्टारक को हटा भी सकते हैं'; जबकि अन्य जातियाँ इस बात का स्पष्ट उल्लेख करती हैं कि 'वे भट्टारक को नहीं हटा सकते'। इसका सीधा आशय यह हुआ कि भट्टारक को उसके अनुयायी हमेशा सहन करते हैं। भट्टारक को एक मुनि की तरह जीने की आवश्यकता नहीं होती। वैसे वह जीवनभर अनुष्ठान करता है तथा धार्मिक-सिद्धांतों के अनुसार जीवनयापन करता है; किन्तु उसे सम्पत्ति रखने का अधिकार है। सामान्यतः भट्टारक चल और अचल-सम्पत्ति रखते हैं तथा वे उसका उपयोग अपनी इच्छानुसार करते हैं। इनकी सम्पत्ति में अपने अनुयायियों द्वारा दी जाने वाली भेंट व राज्य द्वारा दिये जाने वाले अनुदान सम्मिलित होते हैं।
भट्टारक अपने लोगों के धार्मिक व सामाजिक-कल्याण के कार्य में संलग्न रहते हैं, तो उन्हें अपने सदस्यों के ऊपर अनेक नियंत्रण लगाने के अधिकार भी दिये गये हैं। किन्तु आजकल भट्टारकों की स्थिति में काफी अन्तर आ रहा है। सेतवाल, चतुर्थ, पंचम, बोगरा, वैश्य एवं क्षत्रिय भट्टारक अभी भी अपने अनुयायियों पर निश्चित नियंत्रण रखते हैं। जबकि नरसिंहपुरा जाति के भट्टारकों का कोई नियंत्रण नहीं है, तथा हुम्मड़ मेवाड़ा, खण्डेलवाल एवं उपाध्याय भट्टारक अपना नियंत्रण स्वयं समाप्त कर रहे हैं। इसप्रकार अधिकतर वर्तमान भट्टारक अपनी नियंत्रक-शक्तियों का उपयोग नहीं कर रहे हैं, तथा वे अपने अनुयायियों से अनुदान लेते हैं और उनके दैनिक जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं करते हैं। अब भट्टारकों की सत्ता अत्यधिक क्षीण हो चुकी है, किन्तु अभी भी वे धार्मिक व सामाजिक उत्सवों का संचालन अवश्य करते हैं।
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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