Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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यह आवश्यक नहीं है कि उनके अपने भट्टारक हों। अर्थात् प्रत्येक जैन-जाति के भट्टारक होना अनिवार्य नहीं था। 20वीं सदी में मुख्य तौर पर हुम्मड़ मेवाड़ा, नरसिंहपुरा, खण्डेलवाल, सैतवाल, चतुर्थ, पंचम, बोगरा, उपाध्याय, वैश्य एवं क्षत्रिय जातियों के अपने पृथक्-पृथक् भट्टारक होते थे। जबकि कथानेरा, बूढेला, अग्रवाल, गोलापूर्व, जायसवाल, नैवी एवं हुम्मड़ (महाराष्ट्र के) इत्यादि जातियों में जाति-आधारित भट्टारक व्यवस्था विद्यमान नहीं है।18 इसके अतिरिक्त परवार, बन्नौर, उकाड़ा एवं बघेरवाली में भट्टारक-व्यवस्था प्रचलित थी; किन्तु अब इसका लोप हो चुका है।
उपरोक्त जातियों में जिनमें भट्टारक-व्यवस्था अब भी प्रचलित है, उनके भट्टारकों की गद्दियाँ निम्नानुसार हैं
जाति का नाम जाति-विशेष के भट्टारकों की गद्दी स्थान 1. हुम्मड़ मेवाड़ा सूरत, सोजितरा, कलौल, नरसिंहपुर एवं डूंगरपुर 2. नरसिंहपुरा सूरत, सोजितरा एवं केसरिया 3. खण्डेलवाल ग्वालियर, सोनागिर, नागौर, अजमेर एवं श्री महावीर जी 4. सेतवाल लातूर एवं नागपुर 5. चतुर्थ
नांदनी, कोल्हापुर, होसुर एवं टेरादाला 6. पंचम
कोल्हापुर, रायबाग, कोसर एवं हुम्चा 7. बोगारा
हुम्चा, मैसूर, श्रवणबेलगोला, नरसिंहराजपुरा 8. उपाध्याय मूडबिद्री एवं कारकल 9. वैश्य एवं सीतामूड़ा, श्रवणबेलगोला, जिनकांची 10. क्षत्रिय
नरसिंहराजपुरा। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि भट्टारकों की गद्दियाँ उन स्थानों पर स्थित हैं, जहाँ उनसे सम्बन्धित जाति-विशेष का निवास अधिक है। भट्टारकों का मुख्यकार्य धर्म-रक्षा था। वे यह कार्य अन्य धर्मानुयायियों में जैनधर्म को अधिक व्यावहारिक व प्रभावी बताकर करते थे। अर्थात् वे जैनों के आध्यात्मिक कल्याण से सम्बन्धित रहे। इनके सामाजिक कर्तव्यों में जाति-विशेष के हितों की रक्षा सम्मिलित था। वह उनकी सामाजिक मामलों में सलाह देकर अथवा उनके आपसी-विवादों को सुलझाकर अथवा सामाजिक-सम्बन्धों को नियमित कर जैन-ग्रन्थों में निर्धारित व्यवहार व आचरण के नियमों के अनुसार संस्थाओं, रीति-रिवाजों व तरीकों का नियमन भी करते रहे।
भट्टारकों की नियुक्ति का कोई निर्धारित नियम नहीं है। सामान्यतः गुरु-शिष्य-परम्परा द्वारा ही भट्टारकों की नियुक्ति होती है। तथा भट्टारक अपने
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भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ