Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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27. गंगेरवाल 36
गंगेरवाल भी 84 जातियों में से एक है। इसका गंगेडा, गंगेरवाल, गंगरीक, गोगराज एवं गंगेरवाल आदि विभिन्न नामों से उल्लेख मिलता है। पं. ऋषभराय ने संवत् 1833 में 'रविव्रत कथा' की रचना की थी। वे स्वयं गंगेरवाल - श्रावक थे। दक्षिण भारत की दिगम्बर जैन - जातियाँ
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दक्षिण भारत के महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, तमिलनाडु एवं कर्नाटक आदि प्रान्तों में दिगम्बर जैनों की केवल चार जातियाँ थीं। पंचम, चतुर्थ, कासार, बोगार और सेतवाल । पहले ये चारों जातियाँ एक थीं और 'पंचम' कहलाती थी । 'पंचम' नाम वर्णाश्रयी ब्राह्मणों का दिया हुआ जान पड़ता है। जैनधर्म वर्ण-व्यवस्था का विरोधी था, इसलिये उसके अनुयायियों को 'चातुर्वर्ण' से बाहर पाँचवें वर्ण का अर्थात् 'पंचम' कहते थे। जब जैनधर्म का प्रभाव कम हुआ, तो यह नाम रूढ़ हो गया और अन्ततः जैनों ने भी इसे स्वीकार कर लिया। दक्षिण में जब वीर, शैव या लिंगायत- - सम्प्रदाय का उदय हुआ, तो उसने इस पंचम- जैनों को अपने धर्म में दीक्षित करना शुरू कर दिया और वे 'पंचम- लिंगायत' कहलाने लगे। 12वीं शताब्दी तक सारे दक्षिणात्य - जैन 'पंचम' ही कहलाने लगे। पहले दक्षिण के तमाम जैनों में रोटी-बेटी व्यवहार होता था। 37
16वीं शताब्दी के लगभग सभी भट्टारकों ने अपने प्रान्तीय अथवा प्रादेशिक संघ तोड़कर जातिगत संघ बनाये और उस समय मठों के अनुयायियों को चतुर्थ, शेतवाल, बोगार तथा कासार नाम प्राप्त हुये । साधारणतौर से खेती ओर जमींदारी करनेवालों को चतुर्थ; कांसे पीतल के बर्तन बनानेवालों को 'कासार' या 'बोगार' और केवल खेती तथा कपड़े का व्यापार करनेवालों को 'सेतवाल' कहा जाता है। हिन्दी में जिन्हें 'कसेरे' या 'तमेरे' कहते हैं, वे ही दक्षिण में 'कासार' कहलाते हैं। 'पंचम' में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य - इन तीनों वर्णों के धन्धा करनेवालों के नाम समानरूप से मिलते हैं। जिनसेन मठ (कोल्हापुर) के अनुयायियों को छोड़कर और किसी मठ के अनुयायी 'चतुर्थ' नहीं कहलाते। पंचम, चतुर्थ, सेतवाल और बोगार या कासारों में परस्पर रोटी व्यवहार होता है।
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सन् 1914 में प्रकाशित दिगम्बर जैन - डाइरेक्ट्री के अनुसार दिगम्बर जैनजातियों में सबसे अधिक संख्या 'चतुर्थ' जाति की थी, जो उस समय 69285 थी; जिसके आधार पर वर्तमान में इस जाति की संख्या 10 लाख से कम नहीं होनी चाहिये। इसी तरह 'पंचम' जाति के श्रावकों की संख्या 32559, सेतवालों की संख्या 20889, बोगारों की संख्या 2439 तथा कासारों की संख्या 9987 थी। यदि हम दक्षिण- भारत की दिगम्बर जैन - जातियों के श्रावकों की ओर ध्यान दें, तो हमें मालूम
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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