Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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17.
बरैया 27
बरैया जाति भी 84 जातियों में एक उल्लेखनीय जाति है। इस जाति के मुख्य- केन्द्र ग्वालियर, इन्दौर जैसे नगर हैं। ग्वालियर में 250 से अधिक परिवार रहते हैं। पं. गोपालदास जी बरैया इस जाति में उत्पन्न हुये थे। वे अपने समय के सबसे सम्मानित पण्डित थे। ग्वालियर में इस समाज के कई मन्दिर हैं। प्राचीन 84 जातियों की नामावली में इस जाति का उल्लेख नहीं मिलता। ब्र. जिनदास, बख्तराम एवं विनोदीलाल ने भी 84 जातियों में इस जाति का उल्लेख नहीं किया है। ऐसा लगता है कि पहले यह जाति किसी दूसरी जाति का ही एक अंग थी, लेकिन कालान्तर में इसने अपना स्वतंत्र अस्तित्व कायम कर लिया। बरैया - समाज का इतिहास श्री रणजीत जैन एडवोकेट, लश्कर ने लिखा है।
18-19. खरौआ - मिठौआ 28
'खरौआ' जाति पहले 'गोलालारे' जाति का ही एक अंग थी, लेकिन कालान्तर में 'खरौआ-जाति' एक अलग जाति बन गई। 'मिठौआ' भी इसी जाति में से निकली हुई एक जाति है । यह कहा जाता है कि नगर में कुयें का मीठा पानी होने से यह 'मिठौआ-जाति' कहलाने लगी।
20. रायकवाल"
'रायकवाल' जाति का उल्लेख 15वीं शताब्दी के विद्वान् ब्रह्म जिनदास ने किया है, लेकिन सन् 1914 में प्रकाशित डाइरेक्ट्री में इस जाति की संख्या का कोई उल्लेख नहीं किया। लेकिन यह जाति पहले गुजरात - प्रान्त के 'सूरत' जिले में पाई
ती थी। 'सूरत' से 15 मील 'बारडोली' में 200 वर्ष पहले इस जाति के 200 घर थे। अब यह जाति और भी कम संख्या में सिमट गई है। वर्तमान में 'कारा' तथा 'महुआ' में इसके कुछ परिवार मिलते हैं।
21. मेवाड़ा
मेवाड़ - प्रदेश से विकसित होने के कारण यह जाति 'मेवाड़ा' कहलाने लगी। मेवाड़ा - जाति का सभी इतिहासकारों ने उल्लेख किया है। यह जाति भी दस्सा - बीसा में बंटी हुई है। मेवाड़ा - समाज सबसे अधिक महाराष्ट्र में मिलती है। यह जाति 'काष्ठसंघी' रही है। सूरत के मंदिर में शीतलनाथ स्वामी की संवत् 1892 में प्रतिष्ठित प्रतिमा है, जो मेवाड़ा-जाति की लघु-शाखा के सनाथ - बिशनदास आदि श्रावकों भट्टारक विजयकीर्ति के सान्निध्य में प्रतिष्ठित कराई गई थी। सन् 1914 में की गई जनगणना में इस जाति की संख्या करीब 2160 थी।
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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