Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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नेता के रूप में यह मत व्यक्त किया था, कि "मैंने ई. छठी, सातवीं शताब्दी के प्रसिद्ध चीनी-यात्री ह्वेनसांग के इस कथन का सत्यापन किया है, कि यहाँ जैन-तीर्थंकरों के अनुयायी बड़ी संख्या में हैं। उस समय एलेग्जेन्ड्रा में जैनधर्म और बौद्धधर्म का व्यापक प्रचार था।"
चीनी-यात्री ह्वेनसांग 686-712 ईस्वी के यात्रा के विवरण के अनुसार कपिश देश में 10 जैन-मंदिर हैं। यहाँ निर्ग्रन्थ जैन-मुनि भी धर्म-प्रचारार्थ विहार करते हैं। 'काबुल' में भी जैनधर्म का प्रसार था। वहाँ जैन-प्रतिमायें उत्खनन में निकलती रहती
हैं।'
हिन्द्रेशिया, जावा, मलाया, कम्बोडिया आदि देशों में जैनधर्म
इन द्वीपों के सांस्कृतिक इतिहास और विकास में भारतीयों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इन द्वीपों के प्रारम्भिक अप्रवासियों का अधिपति सुप्रसिद्ध जैन-महापुरुष 'कौटिल्य' था, जिसका कि जैनधर्म-कथाओं में विस्तार से उल्लेख हुआ है। इन द्वीपों के भारतीय आदिवासी विशुद्ध शाकाहारी थे। उन देशों से प्राप्त मूर्तियाँ तीर्थंकर-मूर्तियों से मिलती-जुलती हैं। यहाँ पर चैत्यालय भी मिलते हैं, जिनका जैन-परम्परा में बड़ा महत्त्व है। नेपाल देश में जैनधर्म
नेपाल का जैनधर्म के साथ प्राचीनकाल से ही बड़ा सम्बन्ध रहा है। आचार्य भद्रबाहु महावीर निर्वाण-संवत् 170 में नेपाल गये थे, और नेपाल की कन्दराओं में उन्होंने तपस्या की थी, जिससे सम्पूर्ण हिमालय-क्षेत्र में जैनधर्म की बड़ी प्रभावना हुई थी।10
नेपाल का प्राचीन इतिहास भी इस बात का साक्षी है। उस क्षेत्र की बद्रीनाथ, केदारनाथ एवं पशुपतिनाथ की मूर्तियाँ जैन-मुद्रा 'पद्मासन' में हैं, और उन पर ऋषभ-प्रतिमा के अन्य चिह्न भी विद्यमान हैं। नेपाल के राष्ट्रीय अभिलेखागार में अनेक जैन-ग्रंथ उपलब्ध हैं, तथा पशुपतिनाथ के पवित्र-क्षेत्र में जैन-तीर्थंकरों की अनेक मूर्तियाँ विद्यमान हैं। वर्तमान में संयुक्त जैन-समाज द्वारा नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में 'कमलशेश्वरी' नामक स्थान में एक विशाल जैन-मंदिर का निर्माण किया जा चुका है। वर्तमान नेपाल में लगभग 500 परिवार जैनधर्म को मानने वाले हैं। यहाँ श्री उमेश चन्द जैन एवं श्री अनिल जैन आदि सामाजिक-कार्यकर्ता हैं। भूटान देश में जैनधर्म
भूटान में जैनधर्म का खूब प्रसार था, तथा जैन-मंदिर और जैन साधु-साध्वियाँ विद्यमान थे। विक्रम संवत् 1806 में दिगम्बर जैन-तीर्थयात्री लागचीदास गोलालारे ब्रह्मचारी भूटान देश में जैन-तीर्थयात्रा के लिये गया था, जिसके विस्तृत
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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