Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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यात्रा-विवरण (जैन शास्त्र-भण्डर, तिजारा राजस्थान) की 108 प्रतियाँ भिन्न-भिन्न जैन शास्र-भण्डारों में सुरक्षित हैं। पाकिस्तान के परवर्ती क्षेत्रों में जैनधर्म
आदिनाथ स्वामी ने भरत को अयोध्या, बाहुबलि को पोदनपुर तथा शेष 98 पुत्रों को अन्य देश प्रदान किये थे। बाहुबलि ने बाद में अपने पुत्र महाबलि को पोदनपुर का राज्य सौंपकर मुनि-दीक्षा ली थी। पोदनपुर वर्तमान पाकिस्तान क्षेत्र में विन्ध्यार्ध पर्वत के निकट सिंधु नदी के सुरम्य एवं रम्यक के देश उत्तरार्ध में था और जैन-संस्कृति का आदित्य जगत-विख्यात विश्व-केन्द्र था। कालान्तर में पोदनपुर अज्ञात कारणों से नष्ट हो गया। तक्षशिला जनपद में जैनधर्म
तक्षशिला अति प्राचीनकाल में शिखा का प्रमुख केन्द्र था, तथा जैनधर्म के प्रचार का भी महत्त्वपूर्ण केन्द्र रहा। इस दृष्टि से प्राचीन जैन-परम्परा से यह स्थान तीर्थस्थल-सा हो गया था। सिंहपुर भी प्राचीन जैन-प्रचार केन्द्र के रूप में विख्यात था। सम्राट हर्षवर्धन के काल में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने यहाँ की यात्रा की थी, जिससे इस स्थान पर जगह-जगह जैन-श्रमणों का निवास बताया था।11 सिंहपुर जैन महातीर्थ
यहाँ एक जैन-स्तूप के पास जैन-मंदिर और शिलालेख थे, यह जैन महातीर्थ 14वीं शताब्दी तक विद्यमान था। इस महाजैन-तीर्थ का विध्वंस सम्भवतः सुल्तान सिकन्दर बुतशिकन ने किया था। डॉ. बूलर की प्रेरणा से डॉ. स्टॉइन ने सिंहपुर के जैन-मंदिरों का पता लगाने पर कटाक्ष से दो मील की दूरी पर स्थित मूर्ति-गाँव में खदाई से बहुत-सी जैन-मूर्तियाँ और जैन-मंदिरों तथा स्तूपों के खण्डहर प्राप्त किये, जो 26 ऊँटों पर लादकर लाहौर लाये गये, और वहाँ के म्यूजियम में सुरक्षित किये गये। ब्राह्मीदेवी का मंदिर – एक जैन-महातीर्थ
यह स्थान किसी समय श्रमण-संस्कृति का प्रमुख केन्द्र था। इस क्षेत्र में जैन-साधुओं की यह परम्परा एक लम्बे समय से अविच्छिन्न-रूप से चली आ रही है। 'कल्पसूत्र' के अनुसार भगवान् ऋषभदेव की पुत्री 'ब्राह्मी' इस देश की महाराज्ञी थी, अंत में वह साध्वी-प्रमुख भी बनीं, और उसने तप किया।
मो-अन-जो-दड़ो आदि की खुदाइयों में जो अनेकानेक सीलें प्राप्त हुई हैं, उन पर नग्न दिगम्बर-मुद्रा में योगी अंकित है।
मो-अन-जो-दड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा आदि 200 से अधिक स्थानों के
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भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ