Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
View full book text
________________
उत्खनन से जो सीलें, मूर्तियाँ एवं अन्य पुरातात्त्विक सामग्री प्राप्त हुई है, वह सब शाश्वत जैन-परम्परा की द्योतक है। कश्यपमेरु (कश्मीर जनपद) में जैनधर्म
कवि कल्हणकृत राजतरि गिरि के अनुसार कश्मीर-अफगानिस्तान का राजा सत्यप्रतिज्ञ अशोक जैन था, जिसने और जिसके पुत्रों ने अनेक जैन-मंदिरों का निर्माण कराया था, तथा जैनधर्म का व्यापक प्रचार किया। हड़प्पा-परिक्षेत्र में जैनधर्म
इसके अतिरिक्त सक्खर मो-अन-जो-दड़ो, हडप्पा, कालीबंगा आदि की खुदाईयों से भी महत्त्वपूर्ण जैन पुरातत्त्व-सामग्री प्राप्त हुई है, जिसमें बड़ी संख्या में जैन-मूर्तियाँ, प्राचीन सिक्के, बर्तन आदि विशेष ज्ञातव्य हैं। गांधार और पुण्ड जनपद में जैनधर्म
सिंधु नदी से काबुल नदी तक का क्षेत्र मुल्तान और पेशावर गांधारमंडल में सम्मिलित थे। पश्चिमी पंजाब और पूर्वी अफगानिस्तान भी इसमें सम्मिलित थे। गांधार-जनपद में विहार करनेवाले जैन-साधु 'गांधार-गच्छ' के नाम से विख्यात थे। सम्पूर्ण जनपद जैनधर्म बहुल-जनपद था। बांग्लादेश एवं परवर्ती क्षेत्रों में जैनधर्म
बांग्लादेश और उसके निकटवर्ती पूर्वी क्षेत्र और कामरूप-जनपद में जैन-संस्कृति का व्यापक प्रचार-प्रसार रहा है, जिसके प्रचुर संकेत सम्पूर्ण वैदिक और परवर्ती साहित्य में उपलब्ध हैं।
आज इस कामरूप प्रदेश में जिसमें बिहार, उड़ीसा और बंगाल भी आते हैं, सर्वत्र गाँव-गाँव, जिलों-जिलों में प्राचीन सराक जैन-संस्कृति की व्यापक शोध-खोज हो रही है, और नये-नये तथ्य उद्घाटित हो रहे हैं।
पहाड़पुर (राजशाही बंगलादेश) में उपलब्ध 478 ईस्वी के ताम्रपत्र के अनुसार पहाड़पुर में एक जैन-मंदिर था, जिसमें 5,000 जैन-मुनि ध्यान-अध्ययन करते थे, और जिसके ध्वंसावशेष चारों ओर बिखरे पड़े हैं। 'मौज्डवर्धन' और उसके समीपस्थ 'कोटिवर्ष' दोनों ही प्राचीलकाल में जैनधर्म के प्रमुख केन्द्र थे। श्रुतकेवली भद्रबाहु और आचार्य अर्हद्बलि - दोनों ही आचार्य इसी नगर के निवासी थे। परिणामतः जैनधर्म बंगाल एवं उसके आसपास के क्षेत्रों में अत्यधिक लोकप्रिय हो गया। सम्भवतः प्रारम्भिककाल में बंगाल में लोकप्रिय बन जाने के कारण ही जैनधर्म इस प्रदेश के समुद्री तटवर्ती भू-भागों से होता हुआ उत्कल प्रदेश के विभिन्न भू-भागों में भी अत्यन्त शीघ्र गति से फैल गया।
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
00177