Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan

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Page 188
________________ चीन और मंगोलिया में एक समय जैनधर्म का व्यापक प्रचार था। मंगोलिया के भूगर्भ से अनेक जैन-स्मारक निकले हैं, तथा कई खण्डित जैन-मूर्तियाँ और जैन-मंदिरों के तोरण मिले हैं, जिनका आँखों देखा पुरातात्त्विक विवरण 'बम्बई समाचार' (गुजराती) के 4 अगस्त सन् 1934 के अंक में निकला था। ___ यात्रा-विवरणों के अनुसार सिरगम देश और ढाकुल की प्रजा और राजा सब जैन धर्मानुयायी हैं। तातार-तिब्बत, कोरिया, महाचीन, खासचीन आदि में सैकड़ों विद्या-मंदिर हैं। इस क्षेत्र में आठ तरह के जैनी हैं। चीन में 'तलावारे' जाति के जैनी हैं। महाचीन में 'जांगडा' जाति के जैनी थे। चीन के जिगरम देश ढाकुल नगर में राजा और प्रजा सब जैन-धर्मानुयायी हैं। पीकिंग नगर में 'तुबाबारे' जाति के जैनियों के 300 मंदिर हैं, जो सब मंदिर शिखर-बंद हैं। इनमें जैन-प्रतिमायें खड्गासन व पद्मासनमुद्रा विराजमान हैं। यहाँ जैनियों के पास जो आगम हैं, वे 'चीन्डी लिपि' में हैं। कोरिया में भी जैनधर्म का प्रचार रहा है। यहाँ 'सोवावारे' जाति के जैनी हैं। ___ 'तातार' देश में 'जैनधर्मसागर नगर' में जैन-मंदिर 'यातके' यथा 'घघेरवाल' जातियों के जैनी हैं। इनकी प्रतिमाओं का आकार साढ़े तीन गज ऊंचा और डेढ़ गज चौड़ा है। ___ 'मुंगार' देश में जैनधर्म यहाँ 'बाधामा' जाति के जैनी हैं। इस नगर में जैनियों के 8,000 घर हैं तथा 2,000 बहुत सुंदर जैन-मंदिर हैं। तिब्बत और जैनधर्म तिब्बत में जैनी 'आवरे' जाति के हैं। एरूल नगर में एक नदी के किनारे बीस हजार जैन-मंदिर हैं। तिब्बत में सोहना-जाति के जैन भी हैं। खिलवन नगर में 104 शिखर-बंद जैन-मंदिर हैं। वे सब मंदिर रत्न-जटित और मनोरम हैं। यहाँ के वनों में तीस हजार जैन-मंदिर हैं। दक्षिण तिब्बत के हनुवर देश में दस-पन्द्रह कोस पर जैनियों के अनेक नगर हैं, जिनमें बहुत-से जैन-मंदिर हैं। हनुवर देश के राजा-प्रजा सब जैनी हैं। यूनान और भारत में समुद्री सम्पर्क था। यूनानी लेखकों के अनुसार जब सिकन्दर भारत से यूनान लौटा था, तब तक्षशिला के एक जैन-मुनि 'कोलानस' या 'कल्याण-मुनि' उनके साथ यूनान गये, और अनेक वर्षों तक वे एथेन्स नगर में रहे। उन्होंने एथेन्स में सल्लेखना ली। उनका समाधि-स्थान यहीं पर है। जापान और जैनधर्म जापान में भी प्राचीनकाल में जैन-संस्कृति का व्यापक प्रचार था, तथा स्थान-स्थान पर श्रमण-संघ स्थापित थे। उनका भारत के साथ निरंतर सम्पर्क बना 00 170 भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ

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