Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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प्रसिद्ध जर्मन-विद्वान् वानक्रूर के अनुसार मध्य-पूर्व-एशिया में प्रचलित समानिया-सम्प्रदाय श्रमण-जैन-सम्प्रदाय था। विद्वान् जी.एफ. कार ने लिखा है कि ईसा की जन्मशती के पूर्व मध्य एशिया ईराक, डबरान और फिलिस्तीन, तुर्कीस्तान आदि में जैन-मुनि हजारों की संख्या में फैलकर अहिंसाधर्म का प्रचार करते रहे। पश्चिमी एशिया, मिस्र, यूनान और इथियोपिया के जंगलों में अगणित जैन-साधु रहते थे।
मिस्र के दक्षिण भाग के भू-भाग को राक्षस्तान कहते हैं। इन राक्षसों को जैन-पुराणों में विद्याधर कहा गया है। ये जैनधर्म के अनुयायी थे। उस समय यह भू-भाग सूडान, एबीसिनिया और इथियोपिया कहलाता था। यह सारा क्षेत्र जैनधर्म का क्षेत्र था।
मिस्र (एजिप्ट) की प्राचीन राजधानी पैविक्स एवं मिस्र की विशिष्ट पहाड़ी पर मुसाफिर लेखराम ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'कुलपति आर्य मुसाफिर' में इस बात की पुष्टि की है कि उसने वहाँ ऐसी मूर्तियाँ देखी है, जो जैन-तीर्थ गिरनार की मूर्तियों से मिलती-जुलती हैं।
प्राचीनकाल से ही भारतीय, मिश्र, मध्य एशिया, यूनान आदि देशों से व्यापार करते थे, तथा अपना व्यापार के प्रसंग में वे उन देशों में जाकर बस गये थे। बोलान में अनेक जैन-मंदिरों का निर्माण हुआ। पश्चिमोत्तर सीमा-प्रान्त (उच्चनगर) में भी जैनधर्म का बड़ा प्रभाव था। उच्चनगर का जैनों से अतिप्राचीनकाल से सम्बन्ध चला आ रहा है, तथा तक्षशिला के समान ही वह भी जैनों का केन्द्र-स्थल रहा है। तक्षशिला, पुण्डवर्धन, उच्चनगर आदि प्राचीनकाल में बड़े ही महत्त्वपूर्ण नगर रहे हैं। इन अतिप्राचीन नगरों में भगवान ऋषभदेव के काल से ही हजारों की संख्या में जैन-परिवार आबाद थे। घोलक के वीर धवल के महामंत्री 'वस्तुपाल' ने विक्रम सं. 1275 से 1303 तक जैनधर्म के व्यापक प्रसार के लिये योगदान किया था। इन लोगों ने भारत और बाहर के विभिन्न पर्व-शिखरों पर सुंदर जैन-मंदिरों का निर्माण कराया,
और उनका जीर्णोद्धार कराया एवं सिंध (पाकिस्तान), पंजाब, मुल्तान, गांधार कश्मीर, सिंधु-सोवीर आदि जनपदों में उन्होंने जैन-मंदिरों, तीर्थों आदि का नव-निर्माण कराया था। कम्बोज (पामीर) जनपद में जैनधर्म यह पेशावर से उत्तर की ओर स्थित था। यहाँ पर जैनधर्म की महती-प्रभावना और जनपद में विहार करने वाले श्रमण-संघ कम्बोज, याकम्बेडिग-गच्छ के नाम से प्रसिद्ध थे। गंधारगच्छ और कम्बोजा-गच्छ सातवीं शताब्दी तक विद्यमान थे। तक्षशिला के उजड़ जाने के समय तक्षशिला में बहुत-से जैन-मंदिर और स्तूप विद्यमान थे।
___ अरबिया में जैनधर्म इस्लाम के फैलने पर अरबिया-स्थिति आदिनाथ, नेमिनाथ और बाहुबलि के मंदिर और अनेक मूतियाँ नष्ट हो गई थीं। अरबिया-स्थित 'पोदनपुर' जैनधर्म का गढ़ था, और वहाँ की राजधानी थी, तथा वहाँ बाहुबलि की उत्तुंग प्रतिमा विद्यमान थी।
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भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ