Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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19- 20वीं शताब्दी में दिगम्बर जैन समाज की स्थिति का अवलोकन भारत में स्वतंत्रता-संग्राम का बिगुल 1857 में बज गया था, परन्तु उसको अंग्रेजों ने 'गदर' का नाम देकर दबा दिया। उसके बाद कांग्रेस की स्थापना 1885 में हुई, जिसके द्वारा देश को स्वतंत्र कराने की गतिविधियाँ चलना प्रारम्भ हुईं। इसमें जैन - समाज ने अग्रसर होकर अपना सक्रिय सहयोग दिया। देश के प्रत्येक क्षेत्रों से हजारों कार्यकर्त्ता जेल में गये व अपने जीवन का बलिदान दिया। सन् 1901 में काला - पानी की सजा पाने वाले, जितने लोग अंडमान-निकोबार में थे, उनमें 49 जैन थे। दिगम्बर जैन महासभा की स्थापना : 1895 में दिगम्बर जैन महासभा की स्थापना हो गई थी, जिसमें उस समय के अग्रणी नेताओं एवं विद्वानों ने अपना सहयोग देना प्रारम्भ किया। प्रथम सभापति मथुरा के सेठ लक्ष्मणदास जी मनोनीत हुये। समाचार पत्र 'जैन गजट' प्रारम्भ किया गया। 'दिगम्बर जैन महासभा' द्वारा अनेकों महत्त्वपूर्ण कार्य हुये हैं। उन्होंने दिगम्बर जैन समाज की रक्षा के लिये अग्रसर होकर कार्य किये हैं। दिगम्बर जैन तीर्थों की रक्षा, मूर्तियों की सुरक्षा, प्राचीन मन्दिरों के जीर्णोद्धार, आचार्य एवं मुनिराजों के विहार व उनके लिये सभी प्रकार की व्यवस्था कराने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 'जैन गजट' के सम्पादक बैरिस्टर चम्पतराय जी बहुत समय तक रहे। इसके अध्यक्ष साहू सलेकचन्द्र जी, बैरिस्टर चम्पतराय जी, सेठ हुकुमचन्द्रजी, श्री भागचन्द्र जी सोनी, श्री राजकुमार सिंह कासलीवाल, श्री भँवरलाल बाकलीवाल, श्री चांदमल पांड्या, श्री लक्ष्मीचन्द छाबड़ा आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। सन् 1981 में कोटा - अधिवेशन में श्री निर्मलकुमार सेठी अध्यक्ष मनोनीत हुये, तब से वे निरन्तर अध्यक्ष चले आ रहे हैं।
डॉ. टी.सी. कोठारी के नेतृत्व में दिगम्बर जैन तीर्थ- संरक्षणी महासभा के द्वारा विगत 20 वर्षों में जो मुख्य कार्य किये गये हैं, उनका संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार हैं
(1) सर्वप्रथम 6 साल तक महामंत्री के रूप में एक समय योजना का व्रत लेकर देश के हर प्रान्त में व कई जिला समितियों का गठन करके संगठन को मजबूत बनाकर हमारे सदस्य बनाये ।
(2) हर वर्ष में 2-3 प्रान्तीय व अखिल भारतीय स्तर के सम्मेलन व शिविर लगाये एवं साहित्य - निर्माण कराया।
(3) तीर्थ क्षेत्रों व प्राचीन मंदिरों के जीर्णोद्धार का सारे भारत में काम किया। काम का विस्तार हाने के बाद तीर्थ- संरक्षणी महासभा का काम किया।
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एक करोड़ का ध्रुवकांड-सभा की आर्थिक मजबूती के लिये जमा किया। (5) कम्बोडिया के अंगकोर स्थित पंचमेरु के जैन मंदिरों का तथा विदेशों में जैनधर्म के प्रसार का पता लगाने के लिये और युगानुरूप प्रचार के लिये
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
DO 149