Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan

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Page 178
________________ द्वारा चलाये गये खादी-आंदोलन से प्रेरित होकर 40 चरखे आदि का प्रशिक्षण छात्रों को देना प्रारम्भ कर दिया। 1936 में विद्यालय में जिनालय का निर्माण हुआ। भगवान् महावीर की मूर्ति एवं मानस्तम्भ आदि के भी निर्माण हुये। सन् 1953 में राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसाद जी ने चन्दाबाई जी का सम्मान किया। 18 जुलाई 1977 को इनके स्वर्गवास के बाद विद्यालय के समस्त कार्यों की देखभाल श्री सुबोधकुमार जी, मंत्री पद पर रहकर कर रहे हैं। आश्रम में राष्ट्रपिता महात्मागांधी, डॉ. राजेन्द्रप्रसाद जी, पं. जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचन्द्र बोस, जयप्रकाश नारायण, आचार्य विनोबाभावे, काका कालेकर, बाबू जगजीवनराम जी, जे. बी. कृपलानी, रामधारीसिंह दिनकर एवं हजारीप्रसाद द्विवेदी आदि समय-समय पर पधारते रहे हैं। विश्वमैत्री-दिवस : जैन समाज पर्वराज पयूषण के पश्चात् क्षमावणी-दिवस धार्मिक-स्थलों पर मनाता रहा। 1950 में दिल्ली के कुछ प्रसिद्ध विचारों ने विचार किया कि इस महत्त्वपूर्ण दिवस से संसार के व्यक्तियों को प्रेरणा दी जा सकती है; तब उन्होंने इस पर्व का नाम 'विश्वमैत्री-दिवस' रखकर सार्वजनिक-सभा आयोजित की, जिसमें समस्त जैन-समाज का समर्थन प्राप्त हुआ। तत्पश्चात् आचार्य-महाराजों के अतिरिक्त मुनिगण, साधु-साध्वी, अन्य धर्मों के सन्त, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राजनीतिक नेता, अग्रणीय महानुभाव तथा बड़ी संख्या में भाई-बहन भाग लेते रहे। आज यह दिवस स्थान-स्थान पर मनाया जाता है व समाज की संगठन-शक्ति का प्रतीक बन गया है। इसका श्रेय 'भारत-जैन-महामण्डल' को जाता है। वीरसेवा मन्दिर : वीरसेवा मन्दिर की स्थापना पं. जुगलकिशोर जी मुख्तार व बाबू छोटेलाल जी कलकत्तावालों की लगन से हुई। इसका अपना विशाल भवन है, समाचार-पत्र भी प्रकाशित होता है, प्राचीन-ग्रंथों का भण्डार है। वर्णी-महाराजों की देन : दिगम्बर जैन-समाज वर्णी-महाराजों को भूल नहीं सकती, जिनके द्वारा महत्त्वपूर्ण कार्य हुये हैं। पूज्य गणेशप्रसाद जी वर्णी ने जो समाज के कार्य किये, उसका उल्लेख कई स्थानों पर कर चुके हैं। श्री सहजानंद वर्णी ने स्थान-स्थान पर जाकर आध्यात्मिकता का प्रचार-प्रसार किया, साहित्य-प्रकाशन कराया, मेरठ व मुजफ्फरनगर को अपने कार्यों का केन्द्र बनाया, उनके साहित्य व विचारों का प्रचार उनके समाचार-पत्र द्वारा हो रहा है। जिनेन्द्रप्रसाद वर्णी जी के द्वारा महत्त्वपूर्ण साहित्य प्रकाशित हुआ है, जिसमें जिनेन्द्र सिद्धान्तकोश आदि अपना विशेष स्थान रखते हैं। अहिंसा-स्थल : अहिंसा-स्थल का निर्माण लाल प्रेमचन्द जी (जैनावॉच) की लगन व मेहनत का फल है। यह स्थान दिल्ली के मेहरौली-क्षेत्र में सुरम्य पहाड़ी पर स्थित है। देश-विदेश से अनेकों लोग प्रतिदिन यहाँ दर्शनार्थ आते हैं। यहाँ भगवान् महावीर की विशाल पद्मासन-प्रतिमा मुख्य आकर्षण का केन्द्र है। प्राकृतिकसुषमा से सुसज्जित सुव्यवस्थित-वातावरण में यहाँ साहित्य-विक्रय-केन्द्र, 00 160 भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ

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