Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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पश्चात् अजमेर, सुजानगढ़, सीकर, लाडनूं, खानियाँ (जयपुर), पपौरा, श्री महावीर जी, कोटा, उदयपुर एवं प्रतापगढ़ में आपके चातुर्मास सम्पन्न हुये और फाल्गुन कृष्ण अमावस्या विक्रम संवत् 2025 को छ:-सात दिन के साधारण ज्वर के पश्चात् 'श्री महावीर जी' में आपका स्वर्गवास हो गया।
शिवसागर जी का जन्म विक्रम-संवत् 1958 में हुआ था। ये 'खण्डेलवाल' जाति एवं 'रांवका' गोत्रीय श्री नेमीचन्द जी के सुपुत्र थे। आपकी जन्मभूमि 'औरंगाबाद' जिले के अन्तर्गत 'अडगाँव' थी। आपका जन्म नाम हीरालाल था।
आपके दो भाई एवं दो बहनें थीं। पिता की आर्थिक-स्थिति विशेष-अच्छी नहीं होने के कारण आप एवं आपके भाई-बहन उच्चाध्ययन से वंचित रहे। 13 वर्ष की आयु में ही आपके माता-पिता एवं बड़े भाई की मृत्यु हो जाने से सारी गृहस्थी का भार आप पर आ गया। जब आप 28 वर्ष के थे, तब आचार्य शांतिसागर जी के दर्शन करने का सौभाग्य मिला और प्रथम भेंट में ही आचार्यश्री से आपने व्रत-प्रतिमा ग्रहण की। 41 वर्ष की आयु में आपने 'मुक्तागिरी' सिद्धक्षेत्र पर सप्तम-प्रतिमा धारण कर ली और ब्रह्मचारी के रूप में संघ के साथ रहने लगे। इसके पश्चात् इन्होंने 'क्षुल्लक-दीक्षा' ली और संवत् 2006 में 'नागौर' (राजस्थान) में आपने 'मुनि-दीक्षा' धारण कर ली। इसके पश्चात् 14 वर्ष तक आप आचार्यश्री वीरसागर जी के संघ में मुनि-अवस्था में रहे और चारों अनुयोगों का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया और अन्त में संवत् 2014 में आचार्य वीरसागर जी के स्वर्गवास के पश्चात् आप संघ के आचार्य बनाये गये। आपने अपने जीवन में 48 साधुओं को दीक्षा दी।
विक्रम संवत् 2020 में जब खानियाँ (जयपुर) में आपका चातुर्मास हुआ, तो वहाँ निश्चय और व्यवहार को लेकर विद्वानों की एक वृहद् गोष्ठी का आयोजन हुआ। यह एक ऐतिहासिक गोष्ठी थी, जिसमें समाज के कितने ही मूर्धन्य विद्वानों ने भाग लिया। टोडरमल स्मारक भवन के द्वारा प्रकाशित 'खानियाँ तत्त्वचर्चा' के दो भागों में इसकी विवेचना प्रकाशित हो चुकी है। श्री महावीर जी में निर्मित 'शांतिवीर नगर' आपकी ही प्रेरणाओं का सुखद फल है। आचार्य धर्मसागर जी46
आचार्य शिवसागर जी के पश्चात् आचार्य धर्मसागर जी संघ के आचार्य बने। ये बड़े स्पष्टवादी आचार्य थे। आप मारवाड़ी भाषा में प्रभावक प्रवचन देते थे। कठोर तप:साधना करनेवाले थे। आपका जन्म पौष पूर्णिमा विक्रम संवत् 1870 के शुभदिन हुआ। 'गम्भीरा' गाँव के श्रेष्ठी बख्तावरमल जी एवं माता उमराव बाई के पुत्र रूप में आपने जन्म लिया। वि.सं. 2008 में आपने 'फुलेरा' में 'ऐलक-दीक्षा' ग्रहण की और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी विक्रम संवत् 2008 में आपने 'मुनि-दीक्षा' ग्रहण की।
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भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ