Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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था। आपका जन्म-स्थान ग्वालियर राज्य के 'शिवपुरी' जिला अन्तर्गत 'पेपसर' ग्राम में हुआ था। आपका बचपन का नाम 'हजारीमल' था। पिता के सहोदर भाई बलदेव जी झालरापाटनवालों के यहाँ लालन-पालन हुआ था। बचपन से ही आप चिन्तनशील रहते थे तथा धार्मिक क्रियाओं में आपकी विशेष रुचि रहती थी, जो विवाह होने के उपरान्त भी उसी रूप में बनी रही। जब आप 41 वर्ष के थे, तो एक स्वप्न के फलस्वरूप आपको जगत् से विरक्ति हो गई और आश्विन शुक्ल षष्ठी, विक्रम संवत् 1981 को आपने इन्दौर में आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज के पास ऐलक-पद की दीक्षा ले ली। उसी समय आपको 'सूर्यसागर' नाम रखा गया। कुछ समय पश्चात् आप मुनि और फिर आचार्य पद को प्राप्त हो गये।
आचार्य सूर्यसागर जी विद्वान् सन्त थे। उनकी वाणी में मिठास थी। इसलिये उनकी सभाओं में पर्याप्त संख्या में श्रोतागण आते थे। उनका महान् ग्रन्थ 'सूर्यसागर ग्रन्थावली' जयपुर से प्रकाशित हो चुका है। इस ग्रन्थ में जैनधर्म एवं उसके सिद्धांतों का अत्यधिक सुन्दर ढंग से प्रतिपादन किया गया है। आचार्यश्री का स्वर्गवास 'डालमिया नगर' में समाधिपूर्वक हुआ था। वहीं पर उनकी भव्य समाधि बनी हुई है। आचार्य देशभूषण जी ___आचार्य देशभूषण जी 20वीं शताब्दी के प्रभावक आचार्य थे। आप निरन्तर ध्यान-स्वाध्याय में लगे रहते थे। संस्कृत, अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त कन्नड़ एवं मराठी भाषा के भी अच्छे विद्वान् थे। आपका जन्म 'बेलगाँव' जिले के 'कोथलपुर' (कोथली) गाँव में हुआ था। पिता का नाम 'सातगोडा' एवं माता का नाम 'अक्काताई' था। संवत् 1995 में आपका जन्म हुआ। आपका जन्म-नाम 'बालगौडा' था। आप जब तीन माह के थे, तभी माता जी स्वर्गवासी हो गईं और सात वर्ष की अवस्था में आप पितृहीन हो गये। आपके पालन-पोषण का पूरा भार नानी पर आ गया।
15 वर्ष की अवस्था में आपने कन्नड़ और मराठी भाषाओं में अच्छी शिक्षा प्राप्त की। प्रारम्भ में मन्दिर जाने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन आचार्य जयकीर्ति के उपदेशों का गहरा प्रभाव पड़ा और 20 वर्ष की अवस्था में 'रामटेक' में आपने 'ऐलक-दीक्षा' ले ली और 20 वर्ष की अवस्था में कुंथलगिरि क्षेत्र पर आपको आचार्यश्री जयकीर्ति मुनिराज ने 'मुनि-दीक्षा' दे दी। आपको 'सूरत' (गुजरात) में 'आचार्य-पद' से विभूषित किया गया। मुनि-अवस्था में आपने खूब विद्याभ्यास किया। आपकी प्रेरणा से अयोध्या-तीर्थ पर 31 फुट ऊंची आदिनाथ स्वामी की खड्गासन-प्रतिमा विराजमान की गई तथा वहाँ गुरुकुल की स्थापना करवाई गई।
- आपने बंगाल, बिहार, उड़ीसा, हैदराबाद, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश एवं राजस्थान में खूब विहार किया। आपने कोथली, जयपुर आदि नगरों में भव्य जिनालयों की प्रतिष्ठा करवाई। अनेकों पंचकल्याणक-प्रतिष्ठायें
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भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ