Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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जैनधर्म में भी जाति-प्रथा का प्रचलन कई रूपों में है। जैन-जातियों में आपसी खानपान व वैवाहिक सम्बन्धों का निर्धारण जैन समाज में मौजूद जातीय आधारों पर होता है । जातीय आधारों पर दिगम्बर जैनों में भारी बिखराव है. किन्तु धार्मिक-सूत्र ने उन्हें एकताबद्ध रखा है। जाति और सम्प्रदाय केवल सामाजिक मुद्दे ही नहीं हैं, बल्कि ये सांस्कृतिक व दार्शनिक मुद्दे भी हैं। जैसा कि कहा जा चुका है कि जैन- सम्प्रदाय दो प्रमुख समुदायों, क्रमशः 'दिगम्बर' व 'श्वेताम्बर' में विभाजित है। किन्तु दिगम्बर जैन समाज पुनः दो प्रमुख सम्प्रदायों क्रमशः 'बीसपंथी' व 'तेरापंथी' में बँटा हुआ है। जैन-सम्प्रदाय के अनुयायियों में संघभेद भी व्याप्त है। संघभेद से अधिक व्यापक जाति -प्र -प्रथा जैन-स -समुदाय में अधिक महत्त्व रखती है; किन्तु जाति-प्रथा के बारे में यह माना जाता है कि साधु-सन्यासियों के संघ, गण एवं गच्छों में विभाजन से समस्त जैन समाज भी जातियों एवं उपजातियों में विभाजित हो गया।
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दिगम्बर जैन - जातियाँ
दिगम्बर जैन समाज में जाति प्रथा की उत्पत्ति के दो प्रमुख कारण उभरकर सामने आते हैं। प्रथम एवं प्रमुख कारण वैदिक परम्परा में प्रचलित वर्ण एवं जाति-प्रथा को ही माना जायेगा। दूसरा महत्त्वपूर्ण कारण जैन समाज का अनेक संघों, उपसंघों, सम्प्रदायों, उपसम्प्रदायों इत्यादि में विभाजित होना है। दिगम्बर जैन - जातियों के नामों से यह भी आभास होता है कि इनकी अनेक जातियाँ व्यवसाय, प्रदेश, स्थान इत्यादि के नाम पर भी उत्पन्न हुई हैं। यद्यपि भगवान् महावीर के समय जाति-प्रथा ने अधिक जोर नहीं पकड़ा था; लेकिन उनके निर्वाण के कुछ वर्षों पश्चात् ही सैकड़ों जैन-जातियों की उत्पत्ति दिखाई देती है। इसलिये सम्यग्दर्शन के परिपालन में 'जातिमद' को भी अवरोधक माना गया है। 'आदिपुराण' के रचयिता आचार्य जिनसेन ने “ मनुष्यजाति एकैव" कहकर जातियों के महत्त्व को कम करना चाहा और समस्त मानव जाति को एक ही समान माना है ।
महावीर स्वामी के पश्चात् होने वाले गणधरों, केवलियों, आचार्यों एवं भट्टारकों की अनेक पट्टावलियाँ मिलती हैं, जिनमें आचार्यों एवं भट्टारकों के नाम के साथ उनकी जातियों का उल्लेख मिलता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि जैन - सम्प्रदाय में जाति प्रथा का प्रचलन महावीर स्वामी के निर्वाण के पश्चात् ही आरम्भ हो गया था। जैसाकि पूर्व में उल्लेख किया गया है कि जैन-जातियों के उद्गम के तीन प्रमुख कारण रहे हैं। 1. वैदिक - प्रभाव, 2. विभिन्न जैन-समूहों व सम्प्रदायों का उदय, 3. स्थान- विशेष व व्यवसाय-आधारित जाति आदि प्रमुख
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भगवान्
महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ