Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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थी। उनके अनुसार यदि 'पाली - नगर' में 'पल्लीवाल- जाति' का उद्भव हुआ होता, तो यह जाति 'पल्लीवाल' के स्थान पर 'पालीवाल' कहलाती; क्योंकि 'आ' के स्थान पर 'अ' के प्रयोग का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता । आचार्य कुन्दकुन्द भी 'पल्लीवाल- जाति' में उत्पन्न हुये थे, ऐसा पट्टावलियों में उल्लेख मिलता है।
फिरोजाबाद के निकट 'चन्द्रवाड' नामक नगर था, जिसकी स्थापना विक्रम संवत् 1052 में 'चन्द्रपाल' नामक जैन - राजा की स्मृति में करवाई गई थी। 'चन्द्रवाड' में 13वीं शताब्दी से लेकर 16वीं शताब्दी तक चौहानवंशी राजाओं का राज्य रहा। इन राजाओं में अधिकांश मंत्री 'पल्लीवाल - जैन' थे।
पल्लीवाल-जाति में कुछ कवि भी हुये हैं, जिनमें बजरंग लाल, दौलतराम आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
वर्तमान में पल्लीवाल आगरा, फिरोजाबाद, कन्नौज, अलीगढ़ क्षेत्रों एवं ग्वालियर, उज्जैन आदि नगरों में मिलते हैं। आगरा- क्षेत्र के पल्लीवालों के गोत्रों एवं कन्नौज, अलीगढ़-फिरोजाबाद के पल्लीवालों के गोत्रों में थोड़ा अन्तर है । 'मुरैना' तथा 'ग्वालियर-क्षेत्र' के पल्लीवालों के 35 गोत्र हैं, जबकि नागपुर - क्षेत्र के पल्लीवालों के 12 गोत्र ही हैं।
7. नरसिंहपुरा
'नरसिंहपुरा - जाति' के प्रमुख - केन्द्र हैं राजस्थान में 'मेवाड़' एवं 'बागड़ा - प्रदेश'। वेसे इस जाति की उत्पत्ति भी मेवाड़ - प्रदेश का 'नरसिंहपुरा-नगर' से मानी जाती है। इसी नगर में 'भाहड' नामक श्रेष्ठि- श्रावक रहते थे, जो श्रावक-धर्म का पालन करते थे। भट्टारक रामसेन ने सभी क्षत्रियों को जैनत्व में दीक्षित किया तथा 'नरसिंहपुरा - जाति' का उद्भव किया। 16 इस जाति की उत्पत्ति विक्रम संवत् 102 में मानी जाती है तथा यह जाति 27 गोत्रों में विभाजित है।
'प्रतापगढ़' में नरसिंहपुरा - जाति के भट्टारकों की गादी थी। भट्टारक रामसेन के पश्चात् जिनसेन, यशकीर्ति, उदयसेन, त्रिभुवनकीर्ति, रत्नभूषण, जयकीर्ति आदि भट्टारक हुये। ये सभी भट्टारक तपस्वी एवं साहित्य - प्रेमी थे । प्रदेश में विहार करते हुये समाज में धार्मिक क्रियाओं को सम्पादित कराया करते थे। काष्ठासंघ, नदी-तट-गच्छ, विधागण, नरसिंहपुरा लघु- शाखा - आम्नाय में सूरज आदि के भट्टारकों की संख्या 110 मानी जाती है । अन्तिम भट्टारक यश-कीर्ति थे। यह जाति भी दस्सा, बीसा उपजातियों में विभक्त है।
'सिंहपुरा - जाति' भी एक दिगम्बर जैन जाति थी, जो संवत् 1404 में 'नरसिंहपुरा - जाति' में विलीन हो गई। 17
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भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ