Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
View full book text
________________
जौनपुर में जवाहरात का व्यापार करने लगे थे। इस प्रकार कवि का वंश सम्पन्न था तथा अन्य सम्बन्धी भी धनी थे।
बनारसीदास का जन्म विवव.सं. 1643 माघ, शुक्ला एकादशी रविवार को रोहिणी नक्षत्र में हुआ। 14 वर्ष की अवस्था में उन्होंने पं. देवीदास से विद्याध्ययन का संयोग प्राप्त किया। मुनि भानुचन्द्र से भी विविध-शास्त्रों का अध्ययन आरंभ किया। कवि जन्मना श्वेताम्बर-सम्प्रदाय का अनुयायी था। उसके सभी मित्र भी श्वेताम्बर-सम्प्रदाय की मान्यताओं की ओर हुआ।
बनारसीदास के नाम से निम्नलिखित रचनायें प्रचलित हैं – नाममाला, समयसारनाटक, बनारसीविलास, अर्द्धकथानक, मोहविवेकयुद्ध एवं नवरसपद्यावली। कवि भैया भगवतीदास
भैया भगवतीदास आगरा-निवासी कटारिया-गोत्रीय ओसवाल जैन थे। इनके दादा का नाम 'दशरथ साहू' और पिता का 'लालजी' था। इन्होंने स्तुतिपरक या भक्तिपरक जितने पद लिखे हैं, उनमें तीर्थंकरों के गुण और इतिवृत्त दिगम्बर-सम्प्रदाय के अनुसार अंकित हैं।
भैया बनारसीदास 18वीं शताब्दी के कवि हैं। भैया भगवतीदास की रचनाओं का संग्रह 'ब्रह्मविलास' के नाम से प्रकाशित है। इसमें 67 रचनायें संगृहीत हैं। महाकवि भूधरदास
हिन्दी-भाषा के जैन-कवियों में महाकवि भूधरदास का नाम उल्लेखनीय है। कवि आगरा-निवासी थे और इनकी जाति खण्डेलवाल थी। इनकी रचनाओं से इनका समय वि. सं. की 18वीं शती (1781) सिद्ध होता है। महाकवि भूधरदास ने पार्श्वपुराण, जिनशतक और पद-साहित्य की रचना कर हिन्दी-साहित्य को समृद्ध बनाया है। इनकी कविता उच्च-कोटि की है। कवि द्यानतराय
द्यानतराय आगरा-निवासी थे। इनका जन्म अग्रवाल-जाति के गोयल-गोत्र में हुआ था। इनके पूर्वज 'लालपुर' से आकर यहाँ बस गये थे। इनके पितामह का नाम 'वीरदास' और पिता का नाम 'श्यामदास' था। इनका जन्म वि. सं. 1733 में हुआ
और विवाह वि. सं. 1748 में। इनका महान् ग्रन्थ 'धर्मविलास' के नाम से प्रसिद्ध है। इस ग्रन्थ में 333 पद, अनेक पूजायें एवं 45 विषयों पर फुटकर कवितायें संग्रहीत हैं। कवि ने इनका संकलन स्वयं वि. सं. 1780 में किया है। कवि पंडित दौलतराम कासलीवाल
पं. दौलतराम जी कासलीवाल का जन्म वि. सं. 1745 में 'बसवा' ग्राम में
0088
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ