Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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आचार्य ब्रह्म जीवन्धर
भट्टारक ब्रह्म जीवन्धर भट्टारक सोमकीर्ति के प्रशिष्य एवं यशकीर्ति के शिष्य थे। इन्होंने विक्रम संवत् 1590 वैशाख शुक्ल त्रयोदशी, सोमवार के दिन, भट्टारक विनयचन्द्र 'स्वोपज्ञचूनड़ीटीका' की प्रतिलिपि अपने ज्ञानावरणीयकर्म के क्षयार्थ की थी। अतः इनका समय विक्रम संवत् की 16वीं शताब्दी है। इनकी निम्नलिखित रचनायें प्राप्त हैं गुणस्थानवेलि, खटोलारास, झुबुंकगीत, श्रुतजयमाला, नेमिचरित, सतीगीत, तीनचौबीसीस्तुति, दर्शनस्तोत्र, ज्ञानविरागविनती, आलोचना, बीसतीर्थंकरजयमाला, एवं चौबीसतीर्थंकरजयमाला ।
आचार्य श्रुतसागरसूरि
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श्रुतसागरसूरि केवल परम्परा - परिपोषक ही नहीं हैं, अपितु मौलिक संस्थापक भी हैं। इनकी 'तत्त्वार्थसूत्र' पर एक 'श्रुतसागरी' नाम की वृत्ति उपलब्ध है, जिससे इनकी मौलिकता का परिचय प्राप्त होता है। ये मूलसंघ सरस्वतीगच्छ और बलात्कारगण के आचार्य हैं। इनके गुरु का नाम विद्यानन्दि था।
श्रुतसागर ने अपने को देशव्रती, ब्रह्मचारी तथा वर्णी लिखा है तथा 'नववनवतिमहावादिविजेता, तर्क-व्याकरण - छंद - अलंकर - सिद्धान्त - साहित्यादि - शास्त्रनिपुण, प्राकृतव्याकरणादिअनेकशास्त्रचंचु, उयभाषाकविचक्रवर्ती, तार्किकशिरोमणि, परमागमप्रवीण आदि विशेषणों से अलंकृत किया है। 15
श्रुतसागर का व्यक्तित्व एक ज्ञानाराधक तपस्वी का व्यक्तित्व है, जिनका एक-एक क्षण श्रुतदेवता की उपासना में व्यतीत हुआ है। श्रुतसागर निस्सन्देह अत्यन्त प्रतिभाशाली विद्वान् है। ये कलिकासर्वज्ञ कहे जाते हैं। भट्टारक श्रुतसागरसूरि का समय विक्रम की 16वीं शताब्दी है।
श्रुतसागर की अब तक 38 रचनायें प्राप्त हैं। इनमें आठ टीकाग्रन्थ हैं, और चौबीस कथाग्रन्थ हैं, शेष छः व्याकरण और काव्य-ग्रन्थ हैं। ये कृतियाँ इसप्रकार हैं1. यशस्तिलकचन्द्रिका, 2. तत्त्वार्थवृत्ति, 3. तत्त्वत्रयप्रकाशिका, 4. जिनसहस्रनामटीका, 5. महाभिषेकटीका, 6. षट्पाहुडटीका, 7. सिद्धभक्तिटीका, 8. सिद्धचक्राष्टकटीका, 9. ज्येष्ठजिनवरकथा, 10. रविव्रतकथा, 11. सप्तपरमस्थानकथा, 12. मुक्तिसप्तमीकथा, 13. अक्षयनिधिकथा, 15, षोडसकारणकथा, 15, मेघमालाव्रतकथा, 16, चन्दनषष्ठीकथा, 17. लब्धि - विधानकथा, 18. पुरन्दरविधानकथा, 19. दशलक्षणीव्रतकथा, 20. पुष्पां - जलिव्रतकथा, 21. आकाशपंचमीव्रतकथा, 22. मुक्तावलीव्रतकथा, 23. निर्दुःख - सप्तमीकथा, 24. सुगन्धदशमीकथा, 25. श्रावणक्षदशमीकथा, 26. रत्नत्रयव्रतकथा, 27. अनन्तव्रतकथा, 28. अशोकरोहिणीकथा, 29. तपो - लक्षणपंक्तिकथा, 30. पंक्तिकथा, 31. विमानपंक्तिकथा, 32. पल्लि -
भगवान्
महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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