Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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रचित कृतियाँ इस प्रकार हैं - आदिनाथपुराण, हरिवंशपुराण, राम-सीतारास, यशोधररास, हनुमतरास, नागकुमाररास, परमहंसरास, अजितनाथरास, होलीरास, धर्मपरीक्षारास,ज्येष्ठिजिनवररास, श्रेणिकरास,समकितमिथ्यात्वरास,सुदर्शनरास, अम्बिकारास, नागश्रीरास, श्रीपालरास, जम्बूस्वामीरास, भद्रबाहुरास, कर्मविपाकरास, सुकौशलस्वामीरास, रोहिणीरास, सोलहकारणरास, दशलक्षणरास, अनन्तव्रतरास, धन्नकुमाररास, चारुदत्तप्रबन्धरास, पुष्पांजलिरास, धनपालरास, भविष्यदत्तरास, जीवन्धरास, नेमी-श्वररास, करकण्डुरास, सुभौमचक्रवर्तीरास, अट्ठाबीसमूलगुणरास, मिथ्यादुक्कड़विनती, बारहवतगीत, जीवड़ागीत, जिणन्दगीत, आदिनाथस्तवन, आलोचनाजयमाल, गुरुजयमाल, शास्त्रपूजा, सरस्वतीपूजा, गुरुपूजा, जम्बूद्वीपपूजा, निर्दोषसप्तमीव्रतपूजा, रविव्रतकथा, चौरासीजातिजयमाल, भट्टारकविद्याधरकथा, अष्टांगसम्यक्त्वकथा, व्रतकथा, एवं पंचपरमेष्ठीगुणवर्णन। आचार्य सोमकीर्ति __ ये काष्ठासंघ की नन्दितट-शाखा के भट्टारक थे तथा 10वीं शताब्दी के प्रसिद्ध भट्टारक रामसेन की परम्परा में होनेवाले भट्टारक थे। इनके दादागुरु का नाम लक्ष्मीसेन और गुरु का नाम भीमसेन था। इनका जन्म विक्रम संवत् 1480 के लगभग आता है।
इनके शिष्यों में यशकीर्ति, वीरसेन और यशोधर – ये तीन प्रधान हैं। इनकी मृत्यु के पश्चात् यशकीर्ति ही भट्टारक बने। सोमकीर्ति लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् थे और इनकी वाणी में अमृत-जैसा प्रभाव था।
आचार्य सोमकीर्ति ने संस्कृत एवं हिन्दी इन दोनों ही भाषाओं में ग्रन्थ-प्रणयन किया है। उपलब्ध रचनायें निम्प्रकार हैं - 1. संस्कृत रचनायें - सप्तव्यसनकथा, प्रद्युम्नचरित, एवं यशोधरचरित; 2. राजस्थानी रचनायें - गुर्वावलि, यशोधररास, ऋषभनाथ की धूलि, मल्लिगीत, एवं आदिनाथविनती। इसप्रकार सोमकीर्ति ने अहिंसा, श्रावकाचार, अनेकान्त आदि विषयों का प्रतिपादन किया है। आचार्य ज्ञानभूषण
ज्ञानभूषण प्रारम्भ में भट्टारक विमलेन्द्रकीर्ति के शिष्य थे; किन्तु उत्तरकाल में इन्होंने भुवनकीर्ति को अपना गुरु स्वीकार किया है। ज्ञानभूषण एवं ज्ञानकीर्ति ये दोनों ही सगे भाई एवं गुरुभाई थे। ये गोलालारे-जाति के श्रावक थे।
___ नन्दिसंघ की पट्टावलि से ज्ञात होता है कि ज्ञानभूषण गुजरात के रहनेवाले थे। गुजरात में इन्होनें सागारधर्म धारण किया, अहीर (आभीर) देश में में 11 प्रतिमायें धारण की और 'वागवट' या 'बागड़देश' में दुर्धर महाव्रत ग्रहण किये। तौलवदेश के यतियों में इनकी बड़ी प्रतिष्ठा हुई।
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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