Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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जा सकता है। डॉ. राजाराम जैन ने विभिन्न स्रोतों के आधार पर अभी तक कवि की 37 रचनाओं का अन्वेषण किया है।
कवि हरिचन्द या जयमित्रहल
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इनके गुरु पद्मनन्दि भट्टारक थे। ये मूलसंघ बलात्कारगण और सरस्वतीगच्छ के विद्वान् थे। जयमित्रहल की दो रचनायें उपलब्ध हैं - 1. वड्ढमाणचरिउ, और 2. मल्लिणाहकव्व। 'वड्ढमाणचरिउ' का दूसरा नाम 'सेणियचरिउ' भी मिलता है। कवि हरिदेव
इनके पिता का नाम 'चंगदेव' और माता का नाम 'चित्रा' था । हरिदेव का समय 12वीं शती से 15वीं शती के बीच माना है। 57 कवि की एक ही रचना ‘मयणपराजयचरिउ' उपलब्ध है। यह छोटा-सा रूपक खण्डकावय है।
कवि तारणस्वामी
तारणस्वामी बालब्रह्मचारी थे। आरम्भ से ही उन्हें घर से उदासीनता और आत्मकल्याण की रुचि रही । कुन्दकुन्द के समयसार, पूज्यपाद के इष्टोपदेश और समाधिशतक तथा योगीन्दु के परमात्मप्रकाश और योगसार का उनपर प्रभाव लक्षित होता है। संवेगी- श्रावक रहते हुये भी अध्यात्म - ज्ञान की भूख और उसके प्रसार की लगन उनमें दृष्टिगोचर होती है।
तारणस्वामी का जनम अगहन सुदी 7, विक्रम संवत् 1505 में 'पुष्पावती' ( कटनी, मध्यप्रदेश) में हुआ था। पिता का नाम 'गढ़ासाहू' और माता का नाम 'वीरश्री' था। ज्येष्ठ वदी 6, विक्रम संवत् 1572 में शरीरत्याग हुआ था। 67 वर्ष के यशस्वी दीर्घ - जीवन में इन्होंने ज्ञान - प्रचार के साथ 14 ग्रन्थों की रचना भी की है। तारणस्वामी 16वीं शती के लोकोपकारी और अध्यात्म-प्रचारक सन्त हैं। इनके ग्रन्थों की भाषा उस समय की बोलचाल की भाषा जान पड़ती है।
हिन्दी कवि और लेखक
प्रमुख एवं प्रभावक हिन्दी कवियों व लेखकों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैमहाकवि बनारसीदास
'बीहोलियावंश' की परम्परा में श्रीमाल - जाति के अन्तर्गत बनारसीदास का एक धनी-मानी सम्भ्रान्त परिवार में जन्म हुआ । इनके प्रपितामह 'जिनदास' का 'साका' चलता था। पितामह 'मूलदास' हिन्दी और फारसी के पंडित थे, और ये 'नरवर' (मालवा) में वहाँ के मुसलमान - नबाबा के मोदी होकर गये थे। इनके मातामह 'मदनसिंह चिनालिया' जौनपुर के प्रसिद्ध जौरी थे। पिता खड्गसेन कुछ दिनों तक बंगाल के सुल्तान मोदीखाँ के पोतदार थे। और कुछ दिनों के उपरान्त
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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