Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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ओर संकेत करता है कि कवि का निवास तमिलनाडु में या उसके आस-पास किसी स्थान में होना चाहिये । ओडयदेव या वादीभसिंह ने 'गद्यचिन्तामणि' के प्रारम्भ में अपने गुरु का नाम पुष्पसेन लिखा है और बताया है कि " गुरु के प्रसाद से ही उन्हें वादीभसिंहता और मुनिपुंगवता प्राप्त हुई । " कवि ने 'गद्यचिन्तामणि' के मंगलवाक्यों में अपने गुरु का स्मरण निम्नप्रकार किया है—
श्रीपुष्पसेनमुनिनाथ इति प्रतीतो दिव्यो मनुर्मम सदा हृदि संनिदध्यात् । यच्छक्तितः प्रकृतिमूढमतिर्जनोऽपि वादीभसिंह - मुनिपुंगवतामुपैति 32 ॥
समस्त प्रमाणों का आध्ययन करने से यही निष्कर्ष निकलता है कि वादीभसिंह का समय नवम शती है। वादीभसिंह की दो ही रचनायें उपलब्ध हैं 1. क्षत्रचूड़ामणि, एवं 2. गद्यचिन्तामणि ।
महावीराचार्य
भारतीय गणित के इतिहास में महावीराचार्य का नाम आदर के साथ लिया जा सकता है। महावीराचार्य की इस गणित -ग्रन्थ की पाण्डुलिपियों एवं कन्नड़ और तमिल टीकाओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि महावीराचार्य मैसूर प्रान्त के किसी कन्नड़ भाग में हुये होंगे।
महावीराचार्य ने पूर्ववर्ती गणितज्ञों के कार्य में पर्याप्त संशोधन और परिवर्द्धन किये। इन्होंने शून्य के विषय में भाग करने की प्रणाली का आविष्कार किया । आचार्य वृहत् अनन्तवीर्य
'सिद्धिविनिश्चय' के टीकाकार और रविभद्र - पादोपजीवी आचार्य अनन्तवीर्य न्यायशास्त्र के पारंगत और अनेक शास्त्रों के मर्मज्ञ थे। सिद्धिविनिश्चय-टीका से अवगत होता है कि इनका दर्शन - शास्त्रीय अध्ययन बहुत व्यापक और सर्वतोमुखी थी। वैदिक संहिताओं, उपनिषद्, उनके भाष्य एवं वार्त्तिक आदि का भी इन्होंने गहरा अध्ययन किया था। न्याय-वैशेषिक सांख्य-योग, मीमांसा, चार्वाक और बौद्धदर्शन के ये असाधारण पण्डित थे। 'सिद्धिविनिश्चयटीका' के पुष्पिकावाक्यों से इनके गुरु का नाम रविभद्र जान पड़ता है। इन्होंने अपने को उनका 'पादोपजीवी' बतलाया है। इसके अतिरिक्त इनके विषय में और कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती।
'सिद्धिविनिश्चयटीका' के रचयिता अनन्तवीर्य का समय ईस्वी सन् 975-1025 घटित होता है। रविभद्रशिष्य अनन्तवीर्य की दो रचनायें हैं 'सिद्धिविनिश्चयटीका' और 'प्रमाणसंग्रह भाष्य' या 'प्रमाणसंग्रहालंकार'। आचार्य माणिक्यनन्दि
आचार्य माणिक्यनन्दि जैन - न्यायशास्त्र के महापण्डित थे।
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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इनका
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