Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan

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Page 86
________________ अनन्तकीर्त के ग्रन्थों के देखने से ज्ञात होता है कि वे अपने युग के प्रख्यात तार्किक विद्वान् थे, इन्होंने स्वप्नज्ञान को मानसप्रत्यक्ष माना है। अनन्तकीर्ति का समय ईस्वी सन् 98044 के पूर्व है। अनन्तकीर्ति का समय जिनसेन के बाद और वारिजसूरि से पहले अर्थात् विक्रम-संवत् 840 और 1082 के बीच मानना चाहिये।45 आचार्य मल्लिषेण उभयभाषा-कविचक्रवर्ती आचार्य मल्लिषेण अपने युग के प्रख्यात आचार्य हैं। इन्हें 'कविशेखर' का विरुद प्राप्त था। ये अपने को सकलागमवेदी, लक्षणवेदी और तर्कवेदी भी लिखते हैं। आचार्य मल्लिषेण की 'कवि' और 'मन्त्रवादी' के रूप में विशेष ख्याति है। ये उन अजितसेन की परम्परा में हुये हैं, जो गंगनरेश राचमल्ल और उनके मन्त्री तथा सेनापति चामुण्डराय के गुरु थे और जिन्हें नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने 'भुवनगुरु' कहा है। मल्लिषेण के गुरु जिनसेन हैं और जिनसेन के कनकसेन तथा कनकसेन के अजितसेन46 गुरु हैं। आचार्य मल्लिषेण ने अपने कई ग्रन्थों की प्रशस्तियों में अपने को कनकसेन का शिष्य और जिनसेन का प्रशिष्य बतलाया है। असम्भव नहीं कि जिनसेन और उनके अनुज नरेन्द्रसेन दोनों ही मल्लिषेण के गुरु रहे हों - दोनों ने भिन्न-भिन्न विषयों का अध्ययन किया हो। इसमें सन्देह नहीं कि ये संस्कृत-भाषा, साहित्य और मन्त्रवाद के प्रसिद्ध आचार्य रहे हैं। मल्लिषेण का समय ईस्वी सन् की 11वीं शताब्दी है। इनकी ये रचनायें उपलब्ध हैं - नागकुमारकाव्य, महापुराण, भैरवपद्मावतीकल्प, सरस्वतीमन्त्रकल्प, ज्वालिनीकल्प, एवं कामचाण्डालीकल्प। प्रवचनसारटीका, पंचास्तिकायटीका, वज्रपंजरविधान, ब्रह्मविद्या आदि कई ग्रन्थ मल्लिषेण के नाम से उल्लिखित मिलते हैं। पर निश्चयपूर्वक यह नहीं कहा जा सकता कि ये ही मल्लिषेण इन ग्रन्थों के रचयिता हैं। 'वज्रपंजरविधान' और 'ब्रह्मविद्या' मन्त्र-ग्रन्थ होने के कारण इन मल्लिषेण के सम्भव हैं। वज्रपंजरविधान की पाण्डुलिपि श्री जैन सिद्धान्त-भवन आरा में है। आचार्य इन्द्रनन्दि प्रथम यहाँ मन्त्रशास्त्रविज्ञ ज्वालमालिनीकल्प के रचयिता इन्द्रनन्दि अभिप्रेत हैं। एकसन्धिभट्टारक द्वारा विरचित जिनसंहिता में उनके पूर्ववर्ती आठ प्रतिष्ठाचार्यों का उल्लेख आया है। ज्वालमालिनीकल्प की प्रशस्ति से अवगत होता है कि इन्द्रनन्दि योगीन्द्र मन्त्रशास्त्र के विशिष्ट विद्वान् थे तथा वासवनन्दि प्रशिष्य और बप्पनन्दि के शिष्य थे। इन्होंने हेलाचार्य द्वारा उचित हुये अर्थ को लेकर इस ज्वालमालिनीकल्प की रचना की है। 1068 भगवान महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ

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