Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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कर जैनधर्म ग्रहण किया था। गोविन्दभट्ट के छः पुत्र थे - 1. श्रीकुमारकवि, 2. सत्यवाक्य, 3. देवरवल्लभ, 4. उदयभूषण, 5. हस्तिमल्ल, एवं 6. वर्द्धमान।
ये छहों पुत्र कवीश्वर थे। हस्तिमल्ल के सरस्वती-स्वयंवर-वल्लभ, महाकवि-तल्लज और सूक्तिरत्नाकर विरुद1 थे। उनके बड़े भाई सत्यवाक्य ने 'कविसाम्राज्यलक्ष्मीपति' कहकर हस्तिमल्ल की सूक्तियों की प्रशंसा की है। 'राजावलिकथे' के कर्ता ने उन्हें 'द्वयभाषाकविचक्रवर्ती' लिखा है।
हस्तिमल्ल के पुत्र का नाम पार्श्वपण्डित बताया जाता है, जोकि पिता के समान ही यशस्वी और बहुशास्त्रज्ञ था। 'गुड्डिपत्तनद्वीप' वर्तमान 'तन्जौर' जिलान्तर्गत 'दोपनगुडि' स्थान ही है। नाटककार हस्तिमल्ल इसी स्थान के निवासी थे। उनका यह उपाधिप्राप्त नाम है। उनका वास्तविक नाम मल्लिषेण था। परवादीरूपी हस्तियों को वश करने के कारण हस्तिमल्ल यह उपाधिनाम बाद में प्रसिद्ध हुआ होगा।
इनके नाटकों के अध्ययन से अवगत होता है कि आचार्य-हस्तिमल्ल, बहुभाषाविद्, कामशास्रज्ञ, सिद्धान्ततर्कविज्ञ एवं विविध शास्रों के ज्ञाता थे। हस्तिमल्ल सेनसंघ के आचार्य हैं और ये वीरसेन और जिनसेन की परम्परा में हुये हैं। हस्तिमल्ल का समय विक्रम संवत् 1217-1237 (ईस्वी सन् 1161-1181) तक माना गया है।
उभयभाषाकविचक्रवर्ती आचार्य-हस्तिमल्ल के निम्नलिखित चार नाटक और एक पुराण-ग्रन्थ प्राप्त है - 1. विक्रान्तकौरव, 2. मैथिलीकल्याणम, 3. अंजनापवनंजयं, 4. सुभद्रनाटिका, एवं 5. आदिपुराण। इनके द्वारा विरचित एक प्रतिष्ठापाठ भी बताया जाता है।
उपर्युक्त चार नाटकों के अतिरिक्त उदयनराज, भरतराज, अर्जुनराज और मेघेश्वर - ये चार नाटक और इनके द्वारा विरचित माने जाते हैं। भरतराज सम्भवतः सुभद्रानाटिका और मेघेश्वर विक्रान्तकौरव का ही अपरनाम है। उदयनराज और अर्जुनराज इन दो नाटकों के सम्बन्ध में अभी तक यथार्थ जानकारी उपलब्ध नहीं है। आचार्य माघनन्दि
इन्होंने 'शास्त्रसारसमुच्चय' नामक ग्रन्थ की रचना की है। इस ग्रन्थ के अन्त में एक पद्य अंकित है, जिसमें माघनन्दि योगीन्द्र को 'सिद्धान्ताम्बोधिचन्द्रमा' कहा गया है। 'शास्रसारसमुच्चय' के कर्ता का समय ईस्वी सन् की 12वीं शताब्दी का अन्तिम भाग है। यह ग्रन्थ चार अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय में 20 सूत्र हैं, द्वितीय अध्याय में 45 सूत्र है, तृतीय अधयाय में 66 सूत्र है, जबकि चतुर्थ अध्याय में 65 सूत्र हैं।
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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