Book Title: Bhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Author(s): Trilokchandra Kothari, Sudip Jain
Publisher: Trilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
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पर डॉ. ज्योतिप्रसाद जी ने 'क्षपणासार' की प्रशस्ति के आधार पर उसका रचनास्थान दुल्लकपुर या छुल्लकपुर या कोल्हापुर बताया है। आचार्य नयनन्दि
आचार्य नयनन्दि अपने युग के प्रसिद्ध आचार्य हैं। इनके गुरु का नाम माणिक्यनन्दि विद्य था। नयनन्दि ने अपने ग्रन्थ 'सुदंसणचरिउ' में अपनी गुरु-परम्परा अंकित की है। प्रशस्ति से स्पष्ट है कि सुनक्षत्र, पद्मनन्दि, विश्वनन्दि, नन्दनन्दि, विष्णुनन्दि, विशाखनन्दि, रामनन्दि, माणिक्यनन्दि और नयनन्दि नामक आचार्य हुये हैं। 'सुदंसणचरिउ' का रचनाकाल स्वयं ही ग्रन्थकर्ता ने अंकित किया है। यह ग्रन्थ विक्रम संवत् 1100 में रचा गया है। आचार्य ने बताया है कि अवन्ति देश की धारा नगरी में जब त्रिभुवननारायण श्रीनिकेतननरेश भोजदेव का राज्य था, उसी समय धारा नगरी के एक जैन-मन्दिर में बैठकर विक्रम-संवत् 1100 में 'सुदर्शनचरित' की रचना की। नयनन्दि का समय विक्रम संवत् की 11वीं शताब्दी का अन्तिम और 12वीं शती का प्रारम्भिक भाग है।
नयनन्दि की 'सुदंसणचरिउ' और 'सयलविहिविहाणकव्व' नामक दो रचनायें उपलब्ध हैं। सुदंसणचरिउ अपभ्रंश का एक प्रबन्धकाव्य है, जो महाकाव्य की कोटि में परिगणित किया जा सकता है। रोचक कथावस्तु के कारण आकर्षक होने के साथ सालंकार काव्य-कला की दृष्टि से भी यह ग्रन्थ उच्च-कोटि का है। 'सकलविधिविधान' काव्य 58 सन्धियों में समाप्त हुआ है, पर यह ग्रन्थ अपूर्ण ही उपलब्ध है। इस ग्रन्थ की रचना की प्रेरणा मुनि हरिसिंह ने की थी। इस ग्रंथ की सामग्री अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। संसार की असारता और मनुष्य की उन्नति-अवनति का इसमें हृदयग्राही चित्रण आया है। 4. परम्परापोषकाचार्य
___'परम्परापोषक' आचार्यों से अभिप्राय उन भट्टारकों से है, जिन्होंने दिगम्बर-परम्परा की रक्षा के लिये प्राचीन आचार्यों द्वारा निर्मित ग्रन्थों के आधार पर अपने नवीन-ग्रन्थ लिखे। सारस्वताचार्य और प्रबुद्धाचार्य में जैसी मौलिक-प्रतिभा समाविष्ट थी, वैसी मौलिक-प्रतिभा परम्परापोषक-आचार्यों में नहीं पायी जाती।
सामान्यतः यहाँ पर इनका परिचयात्मक विवरण प्रकरण-प्राप्त है, किन्तु इसकी व्यापकता तथा योगदान को पृथक्तः रेखांकित करने के लिये मैं इनका अगले खण्ड में स्वतंत्र-रूप से वर्णन करूंगा। इसीलिये यहाँ पर इनका उल्लेख नहीं कर रहा हूँ। कृपया जिज्ञासु पाठक-वृन्द इस क्रम-परिवर्तन को अन्यथा न लेते हुये यह सामग्री आगामी खण्ड में देखने का कष्ट करें।
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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